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2/1 वि. अचिन्त्यम् (अचिन्त्य) 2/1 वि. च (प्र)=ोर. कूटस्थमचलं ध्र वम् [(कूटस्थम्) + (प्रचलम्) + (ध्र वम्)] कूटस्थम् (कूटस्थ)
2/1 वि. प्रचलम् (प्रचल) 2/1 वि. ध्रुवम् (ध्रुव) 2/1 वि. 130. संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र [(संनियम्य) + (इन्द्रियग्रामम्)+ (सर्वत्र)]
संनियम्य (संनि-यम्) पूकृ. इन्द्रियग्रामम् (इन्द्रियग्राम) 2/1. सर्वत्र (अ)= हर समय. समबुख्यः (समबुद्धि) 1/3 वि. ते (तत्) 1/3 सवि प्राप्नुवन्ति (प्र-प्राप्) व 3/3 सक. मामेव [(माम्) + (एव)] माम् (अस्मद्) 2/1 स. एव (प्र)=ही. सर्वभूतहिते [(सर्व)-(भूत) - (हित) 7/1] रताः (रम्+रत) भूकृ 1/3.
131. क्लेशोऽधिकतरस्तेवामव्यक्तासक्तचेतसाम् [(क्लेशः) + (अधिकतरः)+
(तेषाम्) + (अव्यक्त) + (प्रासक्त) + (चेतसाम्)] क्लेशः (क्लेश) 1/1. अधिकतरः (मधिकतर) 1/1 वि. तेषाम् (तत्) 6/3 स. [(अव्यक्त) वि-(प्रा-सङ्ग्यासक्स). भूक-(चेतस्) 6/3] अव्यक्ता
__ स्त्री (अव्यक्त-अव्यक्ता) 1/1 वि हि (अ)=क्योंकि. गतिर्दुखं बेहवद्भिरवाप्यते [(मतिः) + (दुःखम) + (देहवभिः ) + (अवाप्यते)] गतिः 1/1. दुःखम् (क्रिविन)=कठिनाई से. देह दिभः (दहवत्) 3/3.
, कर्म प्रवाप्यते (प्रव-प्राप्+अवाप्य) व कर्म 3/1 सक.
132. मम्येव [(मयि)+ (एव)] मयि (अस्मद्) 7/3 स. एव. (अ)=ही
मन प्रापत्स्व [(मनः)+ (माधत्स्व)] मनः (मनस्) 2/1. प्राधत्स्व (मा-बा) प्राज्ञा 2/1 सक.. बुद्धि निवेशय [(बुद्धिम्) + (निवेशय)]
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