________________
स. तु (अ)= परन्तु अन्तगतम् (अन्तगत) 1/1 वि. पापम् (पाप) 1/1. जनानाम् (जन)6/3. पुण्यकर्मणाम् (पुण्यकर्मन्)6/3 वि ते (तत्) 1/3 सवि द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते [(द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ताः)+ (भजन्ते)]द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ताः [(द्वन्द्व)-(मोह)-(निस्-मुच्-निर्मुक्त) भूकृ 1/3] भजन्ते (भज्) व 3/3 सक. मां दृढव्रताः [(माम्) + (ढव्रताः)] माम्
(अस्मद्) 2/1 स. दृढव्रताः [[(ढ) वि- (व्रत) 1/3]वि]. 100. जरामरणमोक्षाय [(जरा)-(मरण)- (मोक्ष) 4/1] मामाश्रित्य
[(माम)+ (माश्रित्य)] माम् (अस्मद्) 2/1 स. पाश्रित्य (प्रा-श्रि+
आश्रित्य) पूकृ. यतन्ति (यत्) व 3/3 अक ये (यत्) 1/3 सवि. ते (तत्) 1/3 सवि. ब्रह्म (ब्रह्मन्) 2/1 तद्विदुः [(तत्) + (विदुः)] तत् (तत्) 2/1 सवि. विदुः (विद) व 3/3 सक. कृत्स्नमध्यात्म कर्म [(कृत्स्नम्) + (अध्यात्मम्)+(कर्म)] कृत्स्नम् (कृत्स्न) 2/1 वि. अध्यात्मम् (अध्यात्म) 2/1 वि. कर्म (कर्मन्) 2/1 चाखिलम् [(च)+
(अखिलम्)1 च (अ)=तथा अखिलम् (अंखिल) 2/1 वि. 101. अन्तकाले (अन्तकाल)7, 1 च (म)= और मामेव [ (माम्) + (एव)]
माम् (अस्मद्) 2|| स. एव (अ) =ही. स्मरन्मुक्त्वा [ (स्मरन्) + (मुक्त्वा)] स्मरन् (स्मृ-स्मरत्) वकृ 1 /1. मुक्त्वा (मुच्+मुक्त्वा) पूकृ. कलेवरम् (कलेवर) 2/1 यः (यत्) 1/1 सवि प्रयाति (प्र-या) व 3/1 सक स मभावं याति [(स.)+ (मदभावम्) + (याति)] सः (तत्) 1/1 सवि. मदभावम् (मद्भाव) 2/1. याति (या) व 3/1 सक. नास्त्यत्र [(न) + (मस्ति) + (अत्र)] न (म)=नहीं. प्रस्ति (प्रस्)
व 3/। प्रक. प्रत्र (म)- इसमें संशयः (संशय) 1/1. 02. यं यं वापि [(यम्) + (यम्) + (वापि)] यम् (यत्) 2/1 सवि. वापि
चयनिका ]
_101 ]
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org