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________________ रचलति [(स्थितः) + (चलति)] स्थितः (स्था-स्थित) भूकृ 1/1. चलति (चल) व 3/1 अक. तत्त्वतः (म)= वास्तविकता से... 81. यं लब्ध्वा [(यम्)+ लब्ध्वा )] यम् (यत्) 2/1 सवि. लब्ध्वा (लम्) प्रकृ. बापरं लाभं मन्यते [(च) + (अपरम्)+ (लाभम्)+ (मन्यते)] च (म)=ौर. अपरम् (अपर) 2/1 वि. लाभम् (लाभ) 2/1. मन्यते (मन्) व 3/1 सक. नाषिकं ततः [(न)+ (अधिकम्) + (ततः)] न (म)= नहीं. अधिकम् (अधिक) 2/1 वि ततः (म)= उससे. यस्मिस्थितो न [(यस्मिन्) + (स्थितः) + (न)] यस्मिन् (यंत्) 7/1 स. स्थितः (स्था-स्थित) भूक 1/1. न (अ)=नहीं दुःखेन (दुःख)3/1 गुरुणापि [(गुरुणा) + (अपि)] गुरुणा (गुरु) 3/1 वि. अपि (म)= प्रे. कर्म भी. विचाल्यते (वि-चल-वि-चालय-वि-चाल्यते) व कर्म 3/1 सक. 82. तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसंशितम् [(तम्) + (विद्यात्) + (दुःखसंयोगवियोगम्) + (योगसंज्ञितम्)] तम् (तत्) 2/1 सवि. विद्यात् (विद्) विधि 3/1 सक. दुःखसंयोगवियोगम् [(दुःख)-(संयोग)(वियोग) 2/1. योगसंज्ञितम [(योग)-(संज्ञित) 2/1 वि]स निश्चयेन [(सः) + (निश्चयेन)] सः (तत्) 1/1 सवि. निश्चयेन (प्र)=निश्चित रूप से. योक्तव्यो योगोऽनिविष्णचेतसा [(योक्तव्यः) + (योगः) + (अनिविण्ण) + (चेतसा) [ योक्तव्यः (युज्+योक्तव्य) विधि कृ 1/1. योगः (योग) 1/1. [ (प्रनिर्विण्ण) वि-(चेतस्) 3/1]. 83. संकल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा [ (संकल्प) + (प्रभवान्) + (कामान्) + (त्यक्त्वा )] [(संकल्प)-(प्रभव') 2/3वि]. कामान् (काम) 2/3. 1. समास के अन्त में पर्य होता है : उत्पन्न होने वामा (पाप्टे : संस्कृत-हिन्दी - कोश). 94 ] गीता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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