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________________ + (बुधाः)] [[(ज्ञान)-(अग्नि)- (दह, -+दग्ध) भूक-(कर्म) 2/1] वि] तम् (तत्) 2/1 सवि. पाहुः (ब्रू) 313 सक. पण्डितम् (पण्डित) 2/1. बुधाः (बुध) 1/3 वि... 44. त्यक्त्वा (त्यज्) प्रकृ कर्मफलासङ्ग नित्यतृप्तो निराश्रयः [(कर्म) + (फल) + (प्रासङ्गम्) + (नित्यतृप्तः) + (निराश्रयः)] [(कर्मन्कर्म)-(फल)-(प्रासङ्ग) 2/1]. नित्यतृप्तः [ (नित्य)-(तृप् -+ तृप्त) भूकृ 1/1]. निराश्रयः (निराश्रय) 1/। वि. कर्मयभिप्रवृत्तोऽपि [(कर्मणि) + (अभिप्रवृत्तः) + (अपि)] कर्मणि' (कर्मन्) 7/1. अभिप्रवृत्तः (अभि-प्र-वृत्-+अभि-प्र-वृत्त) भूकृ 1/1. अपि (प्र)= भी. नैव [(न) + (एव)] न .(अ)== नहीं. एव (प्र)= भी. किंचित्करोति [(किंचित्) + (करोति) ]किंचित् (किम् + चित्1) 2|| सवि. करोति (कृ) व 3/1 सक. सः (तत्) 1/1 सवि. 45. निराशीयतचित्तात्मा [(निराशीः) + (यतचित्तात्मा)] निराशीः (निराशिष्) 1/1 वि यतचित्तात्मा [(यत) + (चित्त) + (प्रात्मा)] [(यम्-+यत) भूक-(चित्त)-(प्रात्मन्) 1/1] त्यक्तसर्वपरिग्रहः [(त्यज्-+त्यक्त) भूक-(सर्व) वि-(परिग्रह) 1/1] शारीरं केवलं कर्म [(शारीरम्) + (केवलम्) + (कर्म)] शारीरम् (शारीर) 2/1 वि. केवलम् (प्र)=केवल. कर्म (कर्मन्) 2/1. कुर्वन्नाप्नोति [कुर्वन्) + (न) + (प्राप्नोति)] कुर्वन् (कृ+कुर्वत) व 1/1. न (म)=नहीं. आप्नोति (प्राप्) व 3/1 सक. किल्बिषम् (किल्बिष) 2/1 1. किम् और किम् से व्युत्पन्न अन्य शब्दों के साथ जुड़ने वाला अव्यय, जिससे अर्थ में मनिश्चयात्मकता माती है । 80 ] गीता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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