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[(झाण)-(अज्झयणे)] [(झाण)-(अज्झयण) 7/1] | सुरवो [(सु) अपूरी तरह-(रद) 1/1 वि] । सो (त) 1/1 सवि । पावह
(पाव) व 3/1 सक । उत्तमं (उत्तम) 2/1 वि ठाणं (ठाण) 2/1। 94 अल्हा (अरुह) 1/21 सिवायरिया [ [(सिद्ध)+ (प्रायरिया] [सिद्ध)
(प्रायरिय) 1/2] । उज्झाया (उज्झाय) 1/2 । साहु' (साहु) मूलशब्द 1/2 । पंच (पंच) 1/2 वि । परमेट्ठी (परमेट्ठि) 1/2 । ते (त) 1/2 सवि । वि (अ)= निश्चय ही। ह (अ)= चूकि । चिहिं (चिठ्ठ) व 3/2 अक अपभ्रंश । प्रादे (पाद) 7/1 4. तम्हा (अ)=इसलिए । प्रादा (पाद) 1/1 हु (अ)=ही । मे (अम्ह) 4/1 स । सरणं (सरण) 1/1 ।
____ 1. देखो गाथा 82. 95 सम्मत्तं (सम्मत्त) 1/1 । सण्णाणं [(स) वि-(ण्णाण) 1/1] । सच्चा
रित्तं [(स) वि-(च्चारित्त) 1/1] । हि (अ) = निश्चय ही । सत्तवं [(स) वि-(त्तव) 1/1] । चेव (अ) = तथा । चउरो (चउर) 1/2 वि । चिट्ठाह (चिट्ठ) व 3/2 अक अपभ्रंश । आवे (पाद) 7/1। तम्हा (प्र)
= इसलिए । आदा (पाद) 1/1 हु (प्र) = ही। मे (अम्ह) 4/1 स ।
सरणं (सरण) 1/11 96 धम्मेण (धम्म) 3/1 । होइ (हो) व 3/1 अक । लिगं (लिंग) 1/1 ।
ण (अ) = नहीं। लिंगमत्तेण [(लिंग)-(मत्त) 3/1] । धम्मसंपत्ती[(धम्म)-(संपत्ति) 1/1] । जाणेहि (जाण) प्राज्ञा 2/1 सक। भावधर्म [(भाव)-(धम्म) 2/1] । किं (कि) 1/1 सवि । ते (त) , 4/1 सवि । लिंगेण (लिग) 3/1 | कायव्वों (का) विधिक 1/1।
2. यहाँ विधि का प्रयोग भविष्य अर्थ में हुआ है। 97 सीलस्स' (सील) 6/1 । य* (अ) = और । गाणस्स' (णाण) 6/1 ।
3. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का ... प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 4. कभी-कभी 'और' अर्थ को प्रकट करने के लिए 'य' का प्रयोग
दो बार किया जाता है।
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[ अष्टपाहुड
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