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हवेदि (हव) व 3/1 अक । मोहादो (मोह) 5/1 । सो (त) 1/1 सवि । मूढो (मूढ) 1/1 वि । अण्णाणी (अण्णाणि) 1/1. वि । प्रादसहावस्स [(प्राद)-(सहाव) 6/1] । विवरीमो (विवरी) 1/1 वि। 1. किसी कार्य का कारण व्यक्त करने वाली संज्ञा में तृतीया या
पंचमी होती है। 87 जेण (अ) = चूकि । रागो (राग) 1/1। परे (पर) 7/1 वि । दब्वे
(दब्व) 7/1 । संसारस्स (संसार) 6/1 । हि (अ) = ही । कारणे(कारण) 1/1। तेणावि [(तेण)+ (अवि)] तेण (अ) = इसलिए अवि (अ) = ही। जोइणो (जोइ) 1/2 णिच्चं (अ) = सदैव । कुज्जा (कु) विधि
3/2 सक । अप्पे (अप्प) 7/1 । समावणा [(स) वि-(भावणा) 2/2] । 88 णिदाए (रिंगदा) 7/1। य (अ) = और । पसंसाए- (पसंसा) 7/1 ।
दुक्खे (दुक्ख) 2/2। य (अ) = और । सुहएसु (सुह) 'अ' स्वार्थिक प्रत्यय 7/2। य (अ) = तथा। सत्तणं (सत्त) 6/2। चेव (अ) = और । बंपूर्ण (बंधु) 6/2 । चारित्त (चारित्त) 1/1 । समभाववो (समभाव) पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय । 2. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का
प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 3. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग
पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 89 णिच्छयणयस्स (रिणच्छयणय) 6/1। एवं (अ)=बिल्कुल ऐसा ही।
अप्पा (अप्प) 1/1। अप्पम्मि (अप्प) 7/1। अप्पणे (अप्पणे) 4/1 अनि । सुरदो [(सु) अ= पूरी तरह से-(रद) भूकृ 1/1 अनि । सो (त) 1/1 सवि । होवि (हो) व 3/1 अक । हु (अ) =ही। सुचरित्तो [(सु) अ=श्रेष्ठ-(चरित्त) 1/1] जोई (जोइ) मूलशब्द 1/1 । सो (त)
1/1 सवि । लहइ (लह) व 3/1 सक । णिव्वाणं (णिन्वाव) 2/1 । 62 ]
[ अष्टपाहुंड
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