________________
(विरद) 1/1 वि] । अप्पा (अप्प) 2/1 अपभ्रंश । झायइ (झा)'
व 3/1 सक । झाणत्यो (झाणत्थ) 1/1 वि। ____ 1. देखें गाथा 70 72 जं (ज) 1/1 सवि । मया (मया) 3/1 स अनि । (विस्सवे) व कर्म .
3/1 सक अनि । रूवं (रूव)1/1 । तं (त)1/1 सवि । ग (अ)=नहीं। जाणादि (जाणादि) व 3/1 सक अनि । सव्वहा (अ) = बिल्कुल । जाणगं (जाणग) 1/1 वि । गं' (अ) = नहीं । तम्हा (प्र) = इसलिए । जंपेमि' (जंप) व 1/1 सक । केण* (क) 3/1 सवि । हं (अम्ह) 1/1 सं ।
2. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु यहाँ 'ण' पर अनुस्वार लगाया गया - है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-26 वृत्ति) 3. 'सह' के योग में तृतीया का प्रयोग होता है। यहां 'सह' अर्थ - छुपा है। 4. प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमान काल का प्रयोग प्रायः इच्छा
र्थक रूप में भविष्यत् काल के अर्थ में होता है। 73 जो (ज) 1/1 सवि । सुत्तो (सुत्त) भूक 1/1 अनि । ववहारे (ववहार)
7/1। सो (त) 1/1 सवि । जोई (जोइ) 1/1। जग्गए (जग्ग) व 3/1 अक । सकज्जम्मि [(स)वि-(कज्ज) 7/1] । जग्गदि (जग्ग) व
3/1 अक । अप्पणो (अप्पण) 6/1। कज्जे (कज्ज) 7/1 । 74 इय (अ) = इस तरह । जाणिऊण (जाण) संकृ । जोई (जोइ) 1/1 । वव
हारं (ववहार) 2/1 | चयइ (चय, व 3/1 सक। सव्वहा (अ) = पूर्णतः । सव्वं (सव्व) 2/1 वि । चयह (चय) व 3/1 सक । झायइ (झा) व 3/1 सक। परमप्पाणं [(परम)-+-(अप्पाणं)] [(परम) वि-(अप्पारण) 2/1] । जह (अ) = जैसे । भणियं (भण) भूकृ 1/1। जिणवारदेहि (जिणवरिंद) 3/2।
5. देखें गाथा 70
58 ]
[ अष्टपाहुड
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org