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44 भंजसु (भंज) विधि 2/1 सक । इंदियसेणं [(इंदिय)-(सेणा).2/1] ।
भंजसु (भंज) विधि 2/1 सक । मणमक्कडं [(मण)-(मक्कड) 2/1] । पयत्तण (क्रिविन) = प्रयत्नपूर्वक । मा (अ) = मत । जरणरंजणकरणं [(जण)-(रंजण)-(करण) 2/1] । बाहिरवयवेस [(बाहिर) वि(वय)-(वेस) मूलशब्द 2/1] । तं (तुम्ह) 1/1 सवि । कुणसु (कुण) विधि 2/1 सक। 1. पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा
सकता है । (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) 45 जह (अ) = जैसे । पत्थरो (पत्थर) 1/1 ण । (प्र) = नहीं । भिज्जइ
(भिज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि । परिट्ठियो(परिट्ठि) भूकृ 1/1 अनि । दोहकालमुदएण [(दीहकालं)+ (उदएण)] दोहकालं (अ) = दीर्घ काल तक । उदएण (उदय) 3/1 । तह (अ) = वैसे ही । साहू (साहु)1/1 । वि (अ) = भी। उवसग्गपरीसहेहितो [(उवसग्ग)-(परीसह) 5/2] । 2. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीय विभक्ति का प्रयोग
पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 3. किसी कार्य का कारण बतलाने वाली संज्ञा में तृतीया या पंचमी का
__ प्रयोग किया जाता है । 46 पावं (पाव) 1/1 । हवइ (हव) व 3/1 अक । असेसं (असेस)1/1 वि ।
पुण्णमसेसं [(पुण्णं) + (असेस)] पुण्णं (पुण्ण) 1/1 असेसं (असेस) 1/1 वि । च (अ) = और । परिणामा (परिणाम) 5/1 । परिणामादो (परिणाम) 5/1 । बंधो (बंध) 1/1 । मुक्खो (मुक्ख) 1/1 जिणसासणे
[(जिण)-(सासण) 7/1] । विट्ठो (दिट्ठ) 1/1 वि । 47 जह (अ)= जिस प्रकार । दीवो (दीव) 1/1 । गम्भहरे (गन्भहर) 7/1। - मारुयबाहाविवज्जिो [(मारुय)-(वाहा)-(विवज्जिअ) 1/1 वि] ।
जलइ (जल) व 3/1 अक । तह (अ) = उसी प्रकार । रायानिलरहिओ 50 ]
[ अष्टपाहुड
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