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सिवपुरिपंथं [(सिवपुरि)- (पंथ) 1/1] । जिणउवइ8 [(जिण)
(उवइ8) 1/1 वि] । पयत्तण (क्रिवित्र) = सावधानी पूर्वक । . 31 रयणत्तये [(ग्यग)-(त्तय) 7/1] । प्रलो (अलद्ध) भूक 7/1 अनि ।
एवं (अ) = इस प्रकार । भमिओ (भम) भूक 1/1.। सि (अस) व 21 अक । दोहसंसारे [(दीह) क्रिवित्र = दीर्घकाल तक-(संसार) 7/1] । इय (अ) = इस प्रकार । जिणवरेहिं (जिणवर) 3/2। भणियं (भण) भूक 1/1 । तं (अ) = इसलिए ! रयणत्त (रयगत्त) 2/1। समायरह (ममायर) विधि 2/2 मक । 1. गत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। तथा
गत्यार्थक क्रिया से भूतकालिक कृदन्त कतृवाच्य में भी होता है। 2. कमी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग होता
है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135) 32 भावविमुत्तो [(भाव)-(विमुत्त) भूकृ 1/1 अनि । मुत्तो(मुत्त)1/1 वि ।
ण (अ)=नहीं । य (अ)= परन्तु । मुत्तो (मुत्त) 1/1 वि । बंधवाइमितण [(बंधव) + (आइ)+ (मित्तेण)] [(बंधव)-(प्राइ)-(मित्त)3/1] इय (अ) = इस प्रकार । भाविऊण (भाव) संकृ । उज्झसु (उज्झ) विधि 2/1 सक । गंधं (गंध) 2/1 । अम्भंतरं (अभंतरं) 2/1 वि धीर (धीर) 8/1 । __3. कभी कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का - प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-136) 33 देहादिसंगरहिओ' [(देह) + (आदि) + (संग) + (रहियो)] [(देह)
(ग्रादि)-(संग)-(रह) भूक 1/1] । माणकसाएहि [(माण)-(कसान) 3/2] । सयलपरिचत्तो [(मयल) वि-(परिचत्त) भूकृ 1/1 अनि] । 4. करण के साथ या समास के अन्त में इसका अर्थ होता है मुक्त,
वंचित, रहित ।
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. [ अष्टपाहुड
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