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51. जैसे तारों में चन्द्रमा (तथा) समस्त हरिण समूह में सिंह प्रधान
(होता है), वैसे ही ऋषि (साधु) और श्रावक (गृहस्थ) दो प्रकार के धर्मों में सम्यग्दर्शन (प्रधान होता है)। .
52 इस प्रकार गुण-दोष को.जानकर सम्यग्दर्शनरूपी रत्न को भाव
पूर्वक धारण करो। (चूंकि) (यह)गुणरूपी रत्नों का सार (है), __(और) परम शांति की पहली सीढ़ी (है)। ...... 53 निस्सन्देह कर्मों से रहित आत्मा ही ज्ञानी, शिव, प्राध्यात्मिक
गुरु, सर्वज्ञ, विष्णु, ब्रह्मा, बुद्ध और परमात्मा भी होता है। 54 जैसे कमलिनि का पत्ता स्वभाव और प्रकृति के कारण जल से
मलिन नहीं किया जाता है, वैसे ही सत्पुरुष. (सम्यग्दृष्टि मनुष्य) कषायों और विषयों के कारण कुभाव से दूषित नहीं किया जाता है।
55 वे पुरुष साहसी और वीर (हैं),(जिनके द्वारा) क्षमा तथा आत्म
संयमरूपी चमकती हुई तलवार से दुर्जय, प्रबल, बल में प्रचण्ड कषायरूपी योद्धा जीत लिए गए हैं।
56 मूर्छारूपी महा तथा गहन वृक्ष पर चढी हुई (तथा) विषयरूपी
विष-फूलों से खिली हुई सम्पूर्ण कंपटरूपी लताओं को मुनि - ज्ञानरूपी शस्त्रों से पूर्णत: नष्ट कर देते हैं।
57 जो मूर्छा, अभिमान और लालसा से मुक्त (हैं); तथा करुणा
भाव से संयुक्त (हैं), वे चारित्ररूपी तलवार से पूर्ण पापरूपी खम्भे को नष्ट कर देते हैं। . .
चयनिका ]
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