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भाव को निश्चय ही प्राप्त करने वाले) के लिए (यह कहा गया है कि) वह सूत्र (पागम) को समझता हुमा संसार (मानसिक तनाव) का नाश निश्चय ही करता है।
. 11 संसार में ही स्थित वह पुरुष भी जो आगम (आध्यात्मिक ज्ञान)
सहित है, बर्बाद नहीं होता है। (इसका कारण है कि) (माध्यात्मिक ज्ञान से) स्वचेतना का प्रत्यक्ष ज्ञान (हो जाता है)। (इसलिए) वह (दूसरों के द्वारा) न देखा जाता हुआ भी
उस (तनाव/दुःख) को मिटा देता है। 12 जो (व्यक्ति) अरहंत द्वारा कथित सूत्र के अर्थ को, जीव-अजीव ।
प्रादि नाना प्रकार के पदार्थ को, तथा हेय और उपादेय को भी
जानता है, वह निश्चय ही सम्यग्दृष्टि (होता है)। 13 जो सूत्र अरहंत द्वारा कहा गया है, (जिसकी कथन पद्धति में)
(प्ररहंत द्वारा) व्यवहार तथा परमार्थ (नय) (ग्रहण किया गया है) (उसे)' (तुम) जानो; (क्योंकि) (ऐसे) उस (सूत्र) को जानकर योगी कर्म-मल समूह को नष्ट करता है (मौर) सुख
प्राप्त करता है। 14 यदि (कोई) प्रात्मा को (तो) नहीं चाहता है, परन्तु (दूसरी) _____ सकल धर्म-क्रियामों को करता है, तो भी वह पूर्णता प्राप्त
नहीं करता है, फिर (ऐसा व्यक्ति) संसार (मानसिक तनाव) में
(ही) स्थित कहा गया है। . . . 15 इस कारण से उस पात्मा पर ही तीन प्रकार से (मन-वचन
काय से) श्रद्धा करो। चूकि जिससे परम शान्ति प्राप्त होती
है, वह (ही) प्रयत्न पूर्वक समझा जाना चाहिए । चयनिका ]
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