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अष्टपाहुड-चयनिका
1 (जो व्यक्ति) सम्यक्त्वरूपी रत्न (समताभाव में रुचि) से वंचित (हैं) (वे) (यदि) नाना प्रकार के (लौकिक-प्राध्यात्मिक) शास्त्रों को समझते हुए जीते (हैं), (तो भी) (उनके द्वारा) परम शान्ति (मानसिक समता) के मार्ग का परित्याग किया हुप्रा होने के कारण, (वे) वहाँ हो वहाँ ही (मानसिक तनाव में) चक्कर काटते हैं।
2 जिसके हृदय में सम्यक्त्वरूपी जल का प्रवाह नित्य विद्यमान होता है, उसका कर्म रूपी बंधन (मानसिक तनाव.) (जो) बालू
के ढेर (की तरह) (है) निश्चय ही नष्ट हो जाता है । 3 जो सम्यग्दर्शन (समता में रुचि) से वंचित (हैं), (सद्) ज्ञान से रहित (हैं), तथा चारित्र से गिरे हुए हैं, (ऐसे) ये (लोग) भटके हुए (तथा) पतित (होते हैं) (और) अन्य सब संसार को भी भटकाते हैं।
4 सम्यक्त्व से ज्ञान (सम्यक् ) (होता है), (ऐसे) ज्ञान से सब
पदार्थों का (मूल्यात्मक) ज्ञान (होता है), (और) (ऐसे) जाने , हुए पदार्थ (समूह) के होने के कारण (वह) निश्चय ही शुभ और अशुभ को जान लेता है।
चयनिका |
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