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80. जो जाणदि अरहंतं दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं।।
सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं।।
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जो जाणदि अरहतं दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं सो
(ज) 1/1 सवि (जाण) व 3/1 सक (अरहंत) 2/1 [(दव्वत्त)-(गुणत्त)- . (पज्जयत्त) 3/2 वि] . (त) 1/1 सवि . (जाण) व 3/1 सक (अप्पाण) 2/1 (मोह) 1/1 अव्यय (जा) व 3/1 सक (त) 6/1 सवि (लय) 2/1
जो जानता है अरिहंत को द्रव्यत्व, गुणत्व
और पर्यायत्व से - वह जानता है आत्मा को
जाणदि
अप्पाणं
मोह
मोहो खलु
जादि
निश्चय ही पहुँच जाता है उसका समाप्ति को
तस्स
लयं
अन्वय- जो अरहंतं दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं जाणदि सो अप्पाणं जाणदि तस्स मोहो खलु लयं जादि। ___अर्थ- जो अरिहंत को द्रव्यत्व, गुणत्व और पर्यायत्व अर्थात् (मूलस्वभाव) से जानता है, वह आत्मा को जानता है, (और) उसका मोह (आत्मविस्मृति भाव) निश्चय ही समाप्ति को पहुँच जाता है।
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प्रवचनसार (खण्ड-1)
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