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एगंतेण हि देहो सुहं ण देहिस्स कुणदि सग्गे वा। विसयवसेण दु सोक्खं दुक्खं वा हवदि सयमादा॥
एगंतेण
नहीं ।
देहिस्स
कुणदि .
सग्गे
भी
विसयवसेण
(एगंत) 3/1 अव्यय आवश्यकरूप से अव्यय
निश्चय ही (देह) 1/1
शरीर (सुह) 2/1
सुख को . . अव्यय (देहि) 4/1 वि
शरीरधारी के लिए (कुण) व 3/1 सक
करता है (सग्ग) 7/1.
स्वर्ग में अव्यय (विसयवस) 3/1 वि विषयों के अधीन होने
के कारण अव्यय (सोक्ख) 2/1 (दुक्ख) 2/1 अव्यय
अथवा (हव) व 3/1 सक प्राप्त करता है [(सयं)+(आदा)] सयं (अ) = स्वयं स्वयं आदा (आद) = आत्माआत्मा
परन्तु
।
सोक्खं दुक्खं
सुख को दुःख को
हवदि सयमादा
अन्वय- एगंतेण देहो सग्गे वा देहिस्स हि सुहं ण कुणदि दु विसयवसेण आदा सयं सोक्खं वा दुक्खं हवदि ।।
___ अर्थ- आवश्यकरूप से शरीर स्वर्ग में भी शरीरधारी के लिए निश्चय ही सुख नहीं करता है, परन्तु विषयों के अधीन होने के कारण आत्मा स्वयं सुख अथवा दुःख को प्राप्त करता है।
1.
'हव' क्रिया सकर्मक की तरह भी प्रयुक्त होती है। (पाइय-सद्द-महण्णवोः पृ. 943)
(78)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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