________________
60.
जं केवलं ति णाणं तं सोक्खं परिणमंच सो (से)'चेव। खेदो तस्स ण भणिदो जम्हा घादी खयं जादा।।
जं
.
जो
केवलं ति
केवल .. निश्चय ही
णाणं
ज्ञान
..
सोक्खं परिणम
.. वह
सुख
प्रभाव
और
.
.
सो (से)
(ज) 1/1 सवि [(केवलं)+ (इति)] (केवल) 1/1 वि इति (अ) = निश्चय ही (णाण) 1/1 (त) 1/1 सवि (सोक्ख) 1/1 (परिणम) 1/1 अव्यय (त) 6/1 सवि अव्यय (खेद) 1/1 (त) 6/1 सवि अव्यय (भण-भणिद) भूकृ 1/1 अव्यय (घादि) 1/2 वि . (खय) 2/1 (जा) भूकृ 1/2
उसका ही
खेदो
दुःख उनके
तस्स
भणिदो
.
जम्हा घादी खयं जादा
नहीं कहा गया चूँकि घातिया कर्म विनाश को प्राप्त हुए
अन्वय-जं केवलं णाणं तं ति सोक्खं च तस्स परिणमं चेव जम्हा घादी खयं जादा सो खेदो ण भणिदो।
अर्थ- जो केवलज्ञान (है) वह निश्चय ही (स्वयं में) सुख (है) और उसका (लोक में) प्रभाव (भी) (सुख) ही (होता है)। चूँकि (उन) (केवली के) घातिया (कर्म) विनाश को प्राप्त हुए (हैं), (इसलिए) उनके (किसी प्रकार का) दुःख नहीं कहा गया (है)। 1. यहाँ 'सो' के स्थान पर 'से' का प्रयोग होना चाहिये। 2. यहाँ जादा' का प्रयोग कर्तृवाच्य में किया गया है।
(72)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org