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48. जोण विजाणदि जुगवं अत्थे तिक्कालिगे तिहुवणत्थे।
णातस्स ण सक्कं सपज्जयं दव्वमेगं वा।।
विजाणदि
अत्थे तिक्कालिगे तिहुवणत्थे
णादं
(ज) 1/1 सवि जो . अव्यय
नहीं (विजाण) व 3/1 सक जानता है । अव्यय
... एक ही साथ (अत्थ) 2/2 ..
पदार्थों को (तिक्कालिग) 2/2 वि तीन काल संबंधी (तिहुवणत्थ) 2/2 वि तीन लोक में स्थित (णा) हेक
- जानना (त) 4/1 सवि
उसके लिए
नहीं (सक्क) 1/1 वि संभव (स-पज्जाय) 2/1 वि पर्याय-सहित [(दव्वं)+ (एग)] दव्वं (दव्व) 2/1
द्रव्य को एगं (एग) 2/1 वि अव्यय
तस्स
ण
अव्यय
सक्कं सपज्जयं दव्वमेगं
एक
वा
अन्वय- जो तिहुवणत्थे तिक्कालिगे अत्थे जुगवं ण विजाणदि तस्स सपज्जयं एगं दव्वं वा णातुं सक्कं ण।
अर्थ- जो तीनलोक में स्थित तीनकाल संबंधी पदार्थों को एक ही साथ नहीं जानता उसके लिए पर्याय सहित एक द्रव्य को भी जानना संभव नहीं (है)।
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प्रवचनसार (खण्ड-1)
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