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प्रकाशकीय
आचार्य कुन्दकुन्द-रचित 'प्रवचनसार (खण्ड-1)' हिन्दी-अनुवाद सहित पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
आचार्य कुन्दकुन्द का समय प्रथम शताब्दी ई. माना जाता है। वे दक्षिण के कोण्डकुन्द नगर के निवासी थे और उनका नाम कोण्डकुन्द था जो वर्तमान में कुन्दकुन्द के नाम से जाना जाता है। जैन साहित्य के इतिहास में आचार्य श्री का नाम आज भी मंगलमय माना जाता है। इनकी समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, अष्टपाहुड, दशभक्ति, बारस अणुवेक्खा कृतियाँ प्राप्त होती है।
आचार्य कुन्दकुन्द-रचित उपर्युक्त कृतियों में से ‘प्रवचनसार' जैनधर्मदर्शन को प्रस्तुत करनेवाली शौरसेनी भाषा में रचित एक रचना है। इसमें कुल 275 गाथाएँ हैं। इस ग्रन्थ में तीन अधिकार हैं। 1. ज्ञान-अधिकार 2. ज्ञेय-अधिकार 3. चारित्र-अधिकार। पहले ज्ञान-अधिकार में 92 गाथाएँ हैं। इसमें आत्मा और केवलज्ञान, इन्द्रिय और अतीन्द्रिय सुख, शुभ, अशुभ और शुद्ध उपयोग तथा मोहक्षय आदि का प्ररूपण है। दूसरे ज्ञेय-अधिकार में 108 गाथाएँ हैं। इसमें द्रव्य, गुण और पर्याय का स्वरूप, मूर्त और अमूर्त द्रव्यों का विवेचन, जीव का लक्षण, जीव और पुद्गल का संबंध, निश्चय और व्यवहार नय का अविरोध
और शुद्धात्मा आदि का प्रतिपादन है। तीसरे चारित्र-अधिकार में 75 गाथाएँ हैं। इसमें आगम ज्ञान का महत्व, श्रमण का लक्षण, मोक्षतत्व आदि का निरूपण है।
'प्रवचनसार' का हिन्दी अनुवाद अत्यन्त सहज, सुबोध एवं नवीन शैली में किया गया हैं जो पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। इसमें गाथाओं के
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