________________
17.
भंगविहीणो
भंगविहीणो य भवो संभवपरिवज्जिदो विणासो हि । विज्जदि तस्सेव पुणो ठिदिसंभवणाससमवायो।।
य
भवो
संभवपरिवज्जिदो
विणासो
हि
विज्जदि
तस्सेव
عل
पुणो ठिदिसंभव
णाससमवाय
[(भंग) - (विहीण )
भूक 1 / 1 अनि ]
अव्यय
Jain Education International
( भव) 1 / 1
[ ( संभव) - (परिवज्ज+
परिवज्जिद) भूक 1 / 1] (विणास) 1 / 1
अव्यय
(विज्ज) व 3 / 1. अक
[ ( तस्स) + (एव) ]
तस्स (त) 6/1 सवि
एव (अ)
ही
अव्यय
[(ठिदि) - (संभव) -
( णास ) - ( समवाय) 1 / 1]
विनाश-रहित
For Personal & Private Use Only
और
उत्पत्ति
उत्पत्ति-रहित
विनाश
निश्चय ही
होता है
उसके
ही
फिर
अन्वय- भवो भंगविहीणो य विणासो संभवपरिवज्जिदो हि विज्जदि तस्सेव पुणो ठिदिसंभवणाससमवायो ।
अर्थ - (आत्मा के शुद्धोपयोग की) उत्पत्ति विनाश-रहित और (आत्मा के अशुद्धोपयोग का) विनाश उत्पत्ति - रहित निश्चय ही होता है। उसके ही फिर स्थिति (ध्रौव्य), उत्पत्ति (उत्पाद) और विनाश (व्यय) का अविच्छिन्न संयोग (विद्यमान है) अर्थात् (शुद्धोपयोग पर्याय की उत्पत्ति, अशुद्धोपयोग पर्याय का विनाश और आत्म द्रव्य की धौव्यता ) ।
प्रवचनसार ( खण्ड - 1 )
स्थिति, उत्पत्ति और
विनाश का अविच्छिन्न
संयोग
(29)
www.jainelibrary.org