________________
2.
सेसे पुण तित्थयरे ससव्वसिद्धे विसुद्धसब्भावे। समणे य णाणदंसणचरित्ततववीरियायारे।।
शेष
.
(सेस) 2/2 वि पुण अव्यय
इसके अनन्तर तित्थयरे (तित्थयर) 2/2 तीर्थंकरों को ससव्वसिद्धे [(स) वि- (सव्व) सवि- ... विद्यमान सभी
(सिद्ध) 2/2 वि] सिद्धों को विसुद्धसब्भावे {[(विसुद्ध) वि-(सब्भाव) विशुद्ध स्वभाववाले
2/2] वि} समणे (समण) 2/2
श्रमणों को अव्यय
तथा. . णाणदंसणचरित्त- [(णाणदंसणचरित्ततववीरिय+ तववीरियायारे आयारे)]
{[(णाण)-(दसण)- ज्ञानाचार, दर्शनाचार, (चारित्त)-(तव)-(वीरिय)- चारित्राचार, तपाचार (आयार) 2/2] वि} और वीर्याचारवाले
अन्वय- पुण सेसे तित्थयरे विसुद्धसब्भावे ससव्वसिद्धे य समणे णाणदंसणचरित्ततववीरियायारे।
अर्थ- इसके अनन्तर शेष तीर्थंकरों को, विशुद्ध स्वभाववाले विद्यमान सभी सिद्धों को तथा श्रमणों (आचार्य, उपाध्याय, और साधुओं) को (प्रणाम करता हूँ) (जो) (कि) ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार (और) वीर्याचारवाले
(12)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org