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अब भी उसकी कलाकृति को प्रकट कर रहा है। यहां भी एक संस्कृत का पद्यात्मक लेख खुदा हुआ है, जिसके अनुसार इस मूर्ति की प्रतिष्ठा गुप्त संवत् 106 (ई.सन् 426) कुमारगुप्त काल) में कार्तिक कृष्ण पंचमी को आचार्य भद्रान्वयी आचार्य गौशर्म मुनि के शिष्य शंकर द्वारा की गई थी। इस शंकर ने अपना जन्म स्थान उत्तर भारतवर्ती कुरुदेश बतलाया है। यह सही है कि मूर्तियों अथवा अभिलेखों का गुहाओं में होना दोनों की कला - एकता सिद्ध नहीं करता, यह भी स्वीकार करना कठिन है कि निश्चयतः गुहाएं अपनी प्रतिमाओं से सदियों पूर्व की हैं। जहां उनकी चिरपूर्वता सिद्ध हो जाय वहीं यह सिद्ध मानना युक्तियुक्त होगा। मालवा में गुप्तकालीन जैन मंदिरों के अवशेषों की उपलब्धि अभी नहीं हो पाई है। इसका अर्थ यह नहीं है कि इस काल जैन मंदिरों का निर्माण नहीं हुआ ! कारण कि जब जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं तब की बनी उपलब्ध है ही तब यह भी स्वीकार करना अनिवार्य उचित है कि उनको प्रतिष्ठित करने वाले मंदिर भी रहे अभी-अभी मिली तीन जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं ने इस युग के विवादास्पद नरेश रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर एक अंश में प्रकाश डाला है । "
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गुफाओं की श्रृंखला में धमनार का नाम भी उल्लेखनीय है। यह दशपुर क्षेत्र का एक ऐतिहासिक स्थान है। कर्नल टाड ने यहां एक विशाल नगर होने की कल्पना की है।' यह स्थान मन्दसौर जिले के चन्दवासा से 3 मील की दूरी पर पूर्व की ओर स्थित है।' इस पहाड़ी में वास्तविक रूप से कितनी गुफाएं थीं यह कह सकना कठिन है। जब सन् 1821 में कर्नल जेम्स टाड ने यहां का निरीक्षण किया. था तब उसने यहां की गुफाओं की संख्या 1.70 के लगभग बताई थी। फर्गुसन ने यहां की गुफाओं की संख्या 60 और 70 के मध्य बतायी है। 7 सर अलेक्जेंडर कर्निघम भी फर्गुसन के मत से सहमत हैं। श्री नागेश मेहता ने लिखा है कि 150 गुफाओं के विशाल विहार में कुछ गुफाएं ही वर्णनीय है। अन्य गुफाएं या तो ढह गई हैं या अधूरी बनवाकर छोड़ दी गई है। ये गुफाएं जिस पहाड़ी में खोदी गई है, दुर्भाग्यवश उस पहाड़ी का पत्थर लाल रेतीला है, जो चिरकाल तक स्थायी नहीं रह सकता और यही कारण है कि गुफाओं की दशा जर्जर हो गई है और प्रतिमाओं की दशा भी चिंतनीय है। इतनी गुफाओं में से 2 से 14 तक की गुफाएं आवास योग्य हैं और विशेषतः 7,10, 11, 12 और 14 नम्बर की गुफाएं महत्त्वपूर्ण है। इनमें से कुछ गुफाओं में रहने योग्य कमरे हैं, सभागृह है, मूर्ति स्थापित करने योग्य मंदिर है।' इन गुफाओं के जैन होने सम्बन्धी अपना अभिमत कर्नल टाड ने भी व्यक्त किया है। टाड का इनके संबंध में उल्लेख इस प्रकार है- यह स्तम्भ जैन आकार के बने हुए थे। आश्चर्य का विषय है कि इन मंदिरों के एक अंश में जिस
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