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मेरी कामना
मालव धरती हिन्दुस्तान का मध्य भाग उर्वरा एवं बहुरत्ना वसुंधरा रही है। अनेक धर्म स्थान एवं तीर्थ स्थानों से मंडित रही है। राजा महाराजाओं से सुशोभित रही है। जहाँ के लिये लोकोक्ति थी "पग-पग रोटी डग-डग नीर, मालव धरती, सुखद समीर।।"
प्राक ऐतिहासिक काल से इसकी संस्कृति एवं प्रवृत्ति मूलक संस्कार अपने आप में गौरवपूर्ण रहे हैं। संस्कृति प्रेमी एवं तद्विषयक ज्ञाता महाराजा भोज एवं अवंति अधिनायक विक्रमादित्य धर्म संस्कृति के पोषक एवं धर्मधुरा के धारक हुए हैं। सिद्धसेन दिवाकर की जन्मदात का गौरव इसी भूमि को प्राप्त हुआ है। पेथड़शाह, झांझणशाह, संग्राम सोनी एवं महाकवि धनपाल, कालिदास जैसे इतिहास पुरुषों की प्रदातृ बनने की एवं कीर्तिगाथा को प्रस्तुत इसी भूमि ने किया है। इसका आदि एवं मध्य युग बड़ा ही उत्कर्ष पूर्ण एवं संस्मरणीय रहा है।
. प्रस्तुत मालवा के प्राचीन एवं मध्य युग में जैनधर्म नाम का शोध प्रबंध लिखकर डॉ.श्री तेजसिंहजी गौड़ ने बिखरे जैनधर्म के इतिहास को इस शोध प्रबंध में लेकर निश्चय ही साहित्य जगत की बहुमूल्य सेवा की है, जो श्री गौड़ साहब के श्रम एवं इतिहास प्रेम को प्रकट कर रही है। दस अध्याय में इस शोध ग्रंथ कों लिखा है, जिसमें प्रत्येक अध्याय में जैनधर्म की ऐतिहासिक निर्माणकला एवं तीर्थों की बातों को समाहित किया है।
इस शोध प्रबंध में मौलिक विषयों को समाविष्ट करते हुए मालवा की ऐतिहासिक स्थिति एवं साहित्यिक स्थिति का दिग्दर्शन किया गया है। अनेकशः प्रशस्तियाँ एवं पट्टावलियाँ और तीर्थमालाओं से मालव की महिमा को प्रस्फुटित किया गया है।
दूसरे अध्याय में मालवा के ऐतिहासिक महत्त्व को समझाते हुए उस भूमि पर जैनधर्म के प्रादुर्भाव से लेकर तत्कालीन राजाओं के समय में जैनधर्म की स्थिति को प्रदर्शित करने के साथ निश्चित रूप से तत्समय की वर्तमान स्थिति का निरूपण किया गया है।
तीसरे अध्याय में जैन धर्मानुयायीजनों में भेद, उपभेदों का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिसमें अनेक बातों का प्रकटीकरण कर उस समय की स्थिति को
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