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विरोध की घोषणा दृढ़ता के साथ की और इस प्रकार ये अर्धफालक श्वेताम्बरों के अग्रदूत सिद्ध हुए।' ___डॉ.देव' इन दोनों सम्प्रदायों के अंतिम विभाजन के विषय में लिखते हैं कि वल्लभीपुर के राजा लोकपाल की रानी चन्द्रलेखा के कारण अंतिम विभाजन हुआ। ऐसा कहते हैं कि ये अर्धफालक साधुगण रानी चन्द्रलेखा के द्वारा निमंत्रित किये गये। जब राजा और रानी ने साधुओं को न तो नग्नावस्था में और न ही पूर्ण वेश में देखा तो दोनों ही बड़े निराश हुए। इसलिये अर्धफालकों को कहा गया कि वे पूर्णरूप से वस्त्र धारण कर लें। उसी समय से अर्धफालकों ने सफेद वस्त्र पहनना प्रारंभ कर दिया और तभी से वे श्वेताम्बर (श्वेत-सफेद, अम्बर-वस्त्र) कहलाने लगे।'
निम्नांकित तथ्यों की ओर जब हम देखते हैं तो वे दिगम्बर मत की पुष्टि करते हैं।
(1) मगध में दुर्भिक्ष का तथा साधुओं के दक्षिण भारत की ओर विहार करने का सन्दर्भ श्रवण-बेलगोला के ई.सन् 600 के अभिलेख में आया है।10
(2) स्थानांग में महावीर गौतम से कहते हैं कि यह विचारणीय है कि न तो आचारांग और न ही कल्पसूत्र में सोमिल ब्राह्मण की कथा का सन्दर्भ है। यह केवल टीकाओं में ही मिलती है।"
(3) श्वेताम्बर ग्रन्थ भी दो प्रकार के साध जीवन का उल्लेख करते हैं। 1. जिनकप्पी और 2. थेरकप्पी। इनमें से कुछ ने नग्नता स्वीकार कर 'जिन' की नक्ल करने का प्रयास किया।
(4) खारवेल के कलिंग के शिलालेख (दूसरी सदी ई.पूर्व) में एक जिन प्रतिमा का उल्लेख है। यह प्रतिमा वह (खारवेल) मगध से वापस लाया था, जिसको नंद ले गया था। .. (5) उदयगिरि और खण्डगिरि की गुफाओं की प्रतिमाओं से यह विदित होता है कि केवल तीर्थंकरों को नग्न दिखाया गया है। किन्तु कभी-कभी उनको वस्त्र भी पहना दिये गये हैं। यद्यपि ऐसी प्रतिमा तीर्थंकरों के मानवीय जीवन को प्रदर्शित करने के लिये वस्त्रसहित प्रस्तुत की गयी है।
श्वेताम्बर मत : दिगम्बरों के उपर्युक्त प्रमाणों के विरुद्ध श्वेताम्बर अपने समर्थन में कहते हैं।5:.
(1). सौमील की कथा महावीर के द्वारा शरीर के प्रति मोह न करने की ओर संकेत करती है। (2) - विद्वान् अभी भी भद्रबाहु की तिथि के विषय में एकमत नहीं हैं
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