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________________ राजपूतकालीन खजुराहो शैली के कुछ जैन मंदिर खरगोन जिले के ऊन नामक स्थान में मिले हैं। इन मंदिरों की उपलब्धि से यह प्रमाणित होता है कि इस समय इस क्षेत्र में जैनधर्म अपनी उन्नति के शिखर पर था। ऊन में वैसे दो (1) हिन्दू और (2) जैन मंदिरों के समूह प्राप्त हुए हैं, जो कला की दृष्टि से अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। यहां बहुत बड़ी मात्रा में जैन मूर्तियां भी मिली हैं जिन पर वि.सं.1182 या 1192 के लेख अंकित हैं जिससे यह विदित होता है कि यह मूर्ति आचार्य रत्नकीर्ति द्वारा निर्मित की गई थी। - यहां के मंदिर पूर्णतः पाषाण खण्डों से निर्मित हैं, चिपटी छत व गर्भगृह, सभामण्डप युक्त तथा प्रदक्षिणा भूमि रहित है जिससे इनकी प्राचीनता सिद्ध होती है। भित्तियों और स्तम्भों पर सर्वांग उत्कीर्णन है, जो खजुराहों की कला से समानता रखता है। 33 11वीं सदी के जैन मंदिरों के कुछ अवशेष नरसिंहगढ़ जिला राजगढ़ (ब्यावरा) से 7 मील दक्षिण में विहार नामक स्थान पर भी प्राप्त हुए हैं। यहां पर जैन मंदिरों के साथ ही हिन्द्र, बौद्ध व इस्लाम धर्म के अवशेष भी मिले हैं। इसके अतिरिक्त डॉ.एच.वी.त्रिवेदी ने निम्नांकित स्थानों पर राजपूतकालीन जैन मंदिरों के प्राप्ति की सूचना दी है: (1) बीजवाड़ा जिला देवास (2) बीथला जिला गुना (3) बोरी जिला झाबुआ (4) छपेरा जिला राजगढ़ (ब्यावरा) (5) गुरिला का पहाड़ जिला गुना (6) कड़ोद जिला धार तथा (7) पुरा गुलाना जिला मन्दसौर एवं (8) वईखेड़ा जिला मन्दसौर यह स्थान श्वेताम्बरों का तीर्थ स्थान भी है। यहां चित्तौड़ की चौबीसी के मुख्य मंदिर के द्वार के स्तम्भों की कला से मिलती जुलती कला विद्यमान है। चित्तौड़ की चौबीसी के मुख्य मंदिर का काल 10वीं 11वीं शताब्दी है और यही समय वहां के द्वार स्तम्भों का भी है। वहीं पारसनाथ तीर्थ के सम्बन्ध में किंवदन्ती है कि यहां जो प्रतिमा है वह पहले एक बिम्ब में थी। एक सेठ की गाय जंगल में चरने के लिये आती थी। उस गाय का दूध प्रतिमा पी लेती थी। सेठ व उसके परिवार वाले आश्चर्य करते थे कि गाय का दूध कहां जाता है? एक बार सेठ को स्वप्न हुआ कि पार्श्वनाथ का यहां मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठा करवाओ। इस पर उस सेठ ने वईखेड़ा ग्राम में उक्त मंदिर बनवाया और बड़ी धूमधाम से प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई। यहां के मंदिर सभामण्डप चित्रांकित है। इस काल में इतने मंदिरों की प्राप्ति ही इस बात को प्रमाणित कर देती है कि जैनधर्म इस समय में अपनी श्रेष्ठ स्थिति में रहा होगा। धार में भी इससमय के अनेक मंदिरों का उल्लेख मिलता है। जिस प्रकार इस युग में अनेक जैन मंदिरों के निर्माण के उल्लेख के साथ | 20 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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