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________________ सुरक्षित है। इसके आधार पर प्रो.वाजपेयी ने गुप्तकालीन एक विवादास्पद समस्या पर नवीन प्रकाश डाला है। समस्या गुप्त नरेश रामगुप्तं की ऐतिहासिकता की है। इस गुप्त नरेश का उल्लेख साहित्य में तो मिलता है तथा इसके ताम्बे के सिक्के भी बड़ी संख्या में उपलब्ध होते हैं। स्वयं प्रो.वाजपेयी ने इस नरेश के सिक्कों पर विस्तार से प्रकाश डाला है, किन्तु अभी तक कोई भी ऐसा अभिलेख प्राप्त नहीं हुआ था जिसमें कि रामगुप्त को गुप्त नरेश के रूप में वर्णित किया गया हो। इन मूर्तियों के अभिलेखों के आधार पर इन मूर्तियों का निर्माण 'महाराजधिराज' श्री रामगुप्त के शासनकाल में हुआ। इन प्रतिमाओं के सम्बन्ध में प्रो.वाजपेयी ने लिखा है कि एक प्रतिमा पर आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ का और दूसरी पर नवें तीर्थकर पुष्पदन्त का नाम लिखा है। मूर्तियों की निर्माण शैली ईस्वी चौथी शती के अंतिम चतुर्थांश की कहीं जा सकती है। इन मूर्तियों में कुषाणकालीन तथा ई.पांचवी शती की गुप्तकालीन मूर्तिकला के बीच युग के लक्षण दृष्टव्य है। मथुरा आदि से प्राप्त कुषाण कालीन बौद्ध और तीर्थंकर प्रतिमाओं की चरण चौकियों पर सिंहो जैसा अंकन प्राप्त होता है वैसा इन मूर्तियो पर लक्षित है। प्रतिमाओं का अंग विन्यास तथा सिरों के पीछे अवशिष्ट प्रभामण्डल भी अंतरिम काल के लक्षणों से युक्त हैं। इनमें उत्तर गुप्तकालीन अलंकरण का अभाव है। लिपि विज्ञान की दृष्टि से भी ये प्रतिमा लेख ईस्वी चौथी शती के ठहरते हैं। इन लेखों की लिपि गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के उन लेखों से मिलती है जो सांची और उदयगिरि की गुफाओं में मिले हैं। ___ इन तीर्थंकर प्रतिमाओं का आधार पर प्रो.कृष्णदत्त वाजपेयी ने विवादास्पद गुप्त नरेश रामगुप्त पर पर्याप्त प्रकाश डालकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि समुद्रगुप्त के पश्चात् रामगुप्त सम्राट हुआ था। किन्तु अभी इस मत को मान्यता नहीं मिली है साथ ही अभी यह भी निराकरण होना शेष है कि इन प्रतिमाओं के लेखों में उल्लिखित वही रामगुप्त है अथवा कोई अन्य। इसके अतिरिक्त इस काल की एक और दूसरी उपलब्धि है जैनाचार्य सिद्धसेन दिवाकर। जैनग्रन्थों में इन्हें साहित्यिक एवं काव्यकार के अतिरिक्त नैयायिक और तर्कशास्त्रज्ञों में प्रमुख माना है। सिद्धसेन दिवाकर का जैन इतिहा में बहुत ऊंचा स्थान है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदाय उनके प्रति एक ही भाव से श्रद्धा रखते हैं। किंवदंती है कि एक बार राजा चन्द्रगुप्त ने इनसे कल्याण मंदिर स्तोत्र का पाठ करने का आग्रह किया। राजा के आग्रह पर इन्होंने कल्याण मंदिर स्तोत्र का पाठ किया। पाठ समाप्त होते ही उज्जयिनी के महाकाल मंदिर में शिवलिंग फट गया और उसके मध्य से पार्श्वनाथ की मूर्ति निकल आई।27 18 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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