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अध्याय -9
मालवा के प्रमुख जैनाचार्य
. मालवा के प्रमुख जैनाचार्य : जैनाचार्य के दृष्टिकोण से मालवा अत्यन्त
भाग्यशाली रहा है। क्योंकि यहां अनेक युगप्रधान जैनाचार्य हो गये हैं। कई जैनाचार्यों ने इसी प्रदेश में जन्म लिया, कई अन्य प्रदेश जैसे गुजरात एवं राजस्थान में जन्म लेकर इस प्रदेश को अपना कर्तव्य क्षेत्र बनाकर अमर हो गये। यहां यह उल्लेखनीय है कि जैन साधुओं का जीवन स्थायी न होकर भ्रमणशील रहता है। इस कारण अनेक जैनसाधु यद्यपि मालवा में जन्मे पर कहीं ओर ही उन्होंने अपना कर्तव्य स्थल बनाया। यद्यपि इन आचार्यों ने धर्म, दर्शन तथा अन्य विभिन्न विषयों को अमूल्य देन दी है किन्तु इन्होंने अपने स्वयं के जीवन से सम्बन्धित कुछ भी नहीं लिखा। ऐसी स्थिति में जैनाचार्यों के विषय में कुछ भी लिखना बड़ा कठिन हो जाता है। फिर भी उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर मालवा के प्रमुख जैनाचार्यों के व्यक्तित्व एवं कृतत्व पर प्रकाश डालने का प्रयास नीचे किया जा रहा है।
(1) आचार्य केशीगणधर : उज्जैन के राजा जयसेन और उनकी रानी अनंगसुन्दरी के पुत्र केशीकुमार ने श्री विदेशी मुनि के व्याख्यान को सुनकर जैनधर्म स्वीकार किया। उनसे ही केशीकुमार को पूर्व वृतांत सुनकर जाति स्मरण बान प्राप्त हुआ और बाद में स्वयं के माता पिता तथा 500 अन्य व्यक्तियों ने भी जैन भागवती दीक्षा ग्रहण की। परिशीलन एवं अपनी योग्यता के आधार पर गणनायक पद प्राप्त किया। ये आचार्य तात्विक, व्याख्याता वास्तविक पक्ष को प्रस्तुत करने वाले तथा सत्य की खोज करने वाले थे। ये मति श्रुत और अवधि ये तीनों ही ज्ञान के धारक थे। श्वैतांबिक का राजा नास्तिक था। मंत्री की प्रेरणा से वह आचार्य के पास आया और आचार्य से राजा ने अनेक प्रकार के प्रश्न किये। आचार्य के उत्तर से संतुष्ट होकर जैनधर्म स्वीकार कर लिया।
गणधर श्री केशी स्वामी श्रावस्ती नगर के तंदुकवन में थे। वहां भगवान महावीर के प्रथम गणधर इन्द्रभूमि गौतम स्वामी आये। वे भगवान पार्श्वनाथ तथा महावीर स्वामी के शासन में भिन्नता देखते थे। यहां निम्नांकित विषयों पर [130
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