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संवत 1503 के साल में लिखवाई, वह गुजरात के पाटण शहर में सागरगच्छीय उपाश्रय के भण्डार में आज भी विद्यमान है। उसकी प्रशस्ति में मण्डन का सम्पूर्ण चरित्र लिखा है।'
जैन मंदिर ज्ञानपीठ के रूप में : प्राचीनकाल में अनेक राजा महाराजा कुछ अपने संस्कारों से तथा कुछ धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर मंदिरों में धार्मिक साहित्य उपलब्ध करवाते थे। साथ ही वे धार्मिक साहित्य के लेखन को प्रोत्साहन भी देते रहते थे। इस प्रकार मंदिरों में धार्मिक ग्रन्थों का एक अच्छा संग्रह हो जाया करता था जो धार्मिक एवं विश्वस्त स्थान पर होने के परिणामस्वरूप सुरक्षित भी रहता था। जैन मंदिरों में भी हमें अधिकांश रूप से ग्रन्थ भण्डार मिलते हैं। मंदिरों में केवल अपने धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थ ही नहीं रखे जाते थे, वरन् अन्य धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थ भी अध्ययन एवं संदर्भ आदि के लिये रखे जाते थे और इस प्रकार एक अच्छा पुस्तकालय स्थापित हो जाता था। ___मंदिर में शास्त्र भण्डार किसी एक राजा अथवा एक आचार्य या एक व्यक्ति की देन नहीं है। यह तो ज्ञान का वह सागर है जो अनेक स्थानों की पुस्तक रूपी जल की बूंदों से भरा है। समाज के अनेक व्यक्तियों के सहयोग का प्रतिफल ही इसमें दिखाई देता है।
मंदिरों में अध्ययन, एवं प्रवचन आदि होते रहते हैं। वान पिपासु व्यक्ति अपनी प्यास बुझाने आते-जाते रहते हैं। चूंकि मंदिर ही एक ऐसा स्थान होता है. जहां पर इस प्रकार के ग्रन्थ सुरक्षित एवं व्यवस्थित रह सकते हैं और यही कारण है कि आज हमें अधिकांश जैन मंदिरों में शास्त्र-भण्डार मिलते हैं। _ शास्त्र भण्डार वहां भी रहे होंगे जहां जैन भट्टारकों की गादी रही अथवा प्राचीनकाल में जैन विद्या के जो स्थान केन्द्र रहे हो। किन्तु आज ऐसे स्थानों पर कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। कहीं-कहीं मंदिरों में बड़े-बड़े शास्त्र भण्डार भी मिलते हैं जिनमें बहुमूल्य ग्रन्थ संग्रहित हैं। किन्तु अधिकांश. मंदिरों में छोटे-छोटे शास्त्र भण्डार ही मिलते हैं जिनमें धार्मिक विषय जैसे सिद्धान्त, पूजा, प्रतिष्ठा तथा विधान आदि से सम्बन्धित ग्रन्थ ही मिलते हैं। बड़े भण्डारों में उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, काव्य, चरित्र आदि विषयों से सम्बन्धित ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं।
राजनीतिक, व्यवसायिक अथवा प्राकृतिक कारणों से कभी भी जब मनुष्य परिवर्तन करता है तो उसके साथ वह अपनी ग्रन्थ सम्पत्ति यथासम्भव ले जाता है। इस प्रकार के आवागमन के परिणामस्वरूप अनेक ग्रन्थ असावधानीवश या तो नष्ट हो जाते हैं या मनुष्यों के द्वारा व्यर्थ का बोझ समझकर वहीं किसी
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