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था। यहां की मूर्ति आदि पर कोई लेख नहीं है किन्तु रचना शैली के आधार पर इसका स्थापत्य प्राचीन प्रतीत होता है। मंदिर के द्वारों की चौखट और विशेषकर गर्भगृह के द्वार की चौखट पर जो उत्कीर्णन है ठीक वैसा ही उत्कीर्णन चित्तौड़गढ़ स्थित चौबीसी के गर्भगृह की चौखट पर है। चित्तौड़गढ़ स्थित चौबीसी का समय 10वीं 11वीं शताब्दी है। इससे वई पारसनाथ का समय भी लगभग यही प्रमाणित होता है। गर्भगृह के द्वार की चौखट के ऊपर और भी कुछ मूर्तियां खुदी है किन्तु उन पर सीमेंट का प्लास्टर कर दिया गया है। जब मैंने इसका कारण वहां के पुजारी से जानना चाहा तो उत्तर मिला कि ऊपर की मूर्तियां अश्लील होने के कारण प्लास्टर कर दिया गया है फिर भी इस मंदिर में 10वीं 11वीं सदी की कला के उत्तम उदाहरण देखने को मिलते हैं। दीवारों में जो मूर्तियां हैं वे श्यामवर्णी है। यहां प्रतिवर्ष पौष सुदी 10 को मेला लगता है।
(10) घसोई : रतलाम से कोटा रेलवे लाईन के स्टेशन सुवासरा से 7 मील की दूरी पर यह ग्राम घसोई स्थित है। इस ग्राम में एक उपाश्रय और एक जैन मंदिर है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान का यह मंदिर घूमट बंधी है तथा इसमें चार प्रस्तरं प्रतिमाएं और एक धातु प्रतिमा है। इस गांव के पास ही एक विशाल जलाशय था जो अब सूख गया है। इस जलाशय में से जैनधर्म से सम्बन्धित कितने ही अवशेष प्राप्त हुए हैं। मूर्तियां आदि कालक्रमानुसार परमारकालीन प्रतीत होती है। यह भी श्वेताम्बरों का ही तीर्थ है।
- (11) गंधावल : गंधावल या गंधर्वपुरी देवास जिले की सोनकच्छ तहसील के उत्तर में पांच मील की दूरी पर स्थित है। यहां पर जैन एवं अजैन दोनों ही धर्मावलम्बियों के देवालयों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां दर्जनों जैन प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं जिनमें कुछ विशिष्ट प्रस्तर प्रतिमाओं का संक्षिप्त परिचय अनेकांत में प्रकाशित हुआ है। मध्य युग में यहां जैनियों का दिगम्बर सम्प्रदाय सम्भवतः अधिक प्रभावशाली था, क्योंकि प्राप्त प्रतिमाएं यद्यपि पर्याप्त रूप में खण्डित हो गई हैं, तो भी खड्गासन नग्न मूर्तियां ही यहां अधिक है। ऐसा लगता है कि प्राचीन अवशेषों के प्राप्त होने के कारण ही यहां जैनधर्मावलम्बी दर्शनार्थ आने जाने लगे और इसे एक तीर्थ का रूप मिल गया। वैसे यहां तीर्थंकरों की ही प्रस्तर प्रतिमाएं अधिक मिली हैं। ग्राम के नाम के अनुसार इसका सम्बन्ध राजा गंधर्वसेन से भी किंवदन्ति के अनुसार जोड़ा जाता है।
(12) लक्ष्मणी : मालवा और निमाड़ की सीमा पर अलीराजपुर से 5 मील की दूरी पर लक्ष्मणी ग्राम स्थित है। यह स्थान एक ओर जंगल में स्थित है तथा दोहद रेलवे स्टेशन से अलीराजपुर होते हुए यहां आना पड़ता है। अभी तक इस
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