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________________ ६६ कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज . से ही यहाँ जैनमन्दिर, मानस्तम्भ और स्तूपों का निर्माण होने लगा था। मौर्य और गुप्तकाल में इस प्रकार के निर्माण विपुल परिमाण में यहाँ हुए। फिर पता नहीं किस काल में किस कारण से इन प्राचीन धर्मायतनों और कलाकृतियों का आकस्मिक विनाश हो गया। सम्भवतः श्रावस्ती आदि निकटवर्ती तीर्थों की तरह सुल्तान अलाउद्दीन के सिपहसालार मालिक हव्वस ने इसका भी विनाश कर दिया और इसे खण्डहर बना दिया। इसके बाद इसका फिर पुनरुद्धार नहीं हो पाया। इन आयतनों के भग्नावशेषों पर एक छोटे-से गाँव का निर्माण अवश्य हो गया। गाँव के पुनर्निर्माण के समान इसके नाम का भी पुनर्निर्माण हो गया और ककुभग्राम ही बदलते-बदलते कहाऊँ बन गया। ये अवशेष काफी बड़े क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। एक टूटे-फूटे कमरे में, जिसके ऊपर छत नहीं है, एक दीवाल में आलमारी बनी हुई है। उसमें ५ फुट ऊँची सिलेटी वर्ण की तीर्थंकर प्रतिमा कायोत्सर्गासन में अवस्थित है। प्रतिमा का एक हाथ कुहनी से खण्डित है। दोनों पैर खण्डित हैं। बाँह और पेट केक हैं। छाती से नीचे पेट का भाग काफी घिस गया है। मुख ठीक है। ग्रामीण लोग तेल-पानी से इसका अभिषेक करते हैं। . इस कमरे के बाहर एक भग्न चबूतरे, पर एक मूर्ति पड़ी हुई है। यह तीर्थंकर मूर्ति है। रंग सिलेटी है तथा अवगाहना ४ फुट के लगभग है। यह खड्गासन है। यह अतनी घिस चुकी है कि इसका मुख तक पता नहीं चलता। मूर्ति-पाषाण में परतें निकले लगी हैं। इन मूर्तियों से उत्तर दिशा में गाँव की ओर बढ़ने पर प्राचीन मानस्तम्भ मिलता है। यह एक खुले मैदान में अवस्थित है। इसके चारों ओर प्राचीन भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। यदि यहाँ खुदाई करायी जाये तो भगवान् पुष्पदन्त का प्राचीन जैनमन्दिर निकलने की सम्भावना है क्योंकि मानस्तम्भ सदा मन्दिर के सामने रहता है। यदि यहाँ जैन मन्दिर निकल सका तो उससे गुप्त काल की कला और इतिहास पर नया प्रकाश पड़ सकता है। मानस्तम्भ भूरे पाषाण का है और २४ फुट ऊँचा है। स्तम्भ नीचे चौपहलू, बीच में अठ पहलू और ऊपर सोलह पहलू है। जमीन से सवा दो फुट ऊपर भगवान् पार्श्वनाथ की सवा दो फुट अवगाहनावाली प्रतिमा उसी पाषाणस्तम्भ में उकेरी हुई है। यह पश्चिम दिशा में है। चारणों के दोनों ओर भक्त स्त्री-पुरुष हाथों में कलश लिये चारणों का प्रक्षालन कर रहे हैं। मूर्ति के पीठ के पीछे सर्प-कुण्डली बनी हुई है और सिरके ऊपर फणमण्डप है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004156
Book TitleKahau Stambh evam Kshetriya Puratattv ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra Mohan Jain
PublisherIdrani Jain
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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