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कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज
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परिशिष्ट-११ भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, भाग-१, बम्बई १६७४, पृष्ठ १७३-७५, चित्र ६०
ककुभग्राम
मार्ग
ककुभ ग्राम वर्तमान में 'कहाऊँ' गाँव के नाम से प्रसिद्ध है। यह देवरिया जिलें में परगना सलेमपुर से ५ कि.मी., काकन्दी से १६ कि.मी. और गोरखपुर से ७३ कि.मी. की दूरीपर है। काकन्दी से यहाँ तक का मार्ग कच्चा है। बस और जीप जा सकती है। यह एक छोटा सा गाँव है, जो ईंटों के खण्डहरों पर बसा हुआ है। जिस टीले पर यह गाँव आबाद है, वह लगभग आठ सौ वर्ग गज है। तीर्थक्षेत्र
___ भगवान् पुष्पदन्तकी जन्मभूमि काकन्दी यहाँ से केवल १६ कि.मी. दूर है। पहले यहाँ ग्राम नहीं था, वन था, जो काकन्दी नगरी के बाहर था। भगवान पुष्पदन्त ने काकन्दी के इसी वन में दीक्षा ली थी। उस वन में कुटज जाति के वृक्ष अधिक थे। सारा वन उनके पुष्पों से मुखरित और सुरभित रहता था। उन्होंने पौष शुक्ला ११ को इस वन में दीक्षा ली थी। इस ऋतु में वन चारों ओर पुष्पित था। कुटज जाति के वृक्षों के अतिरिक्त इस वन में अर्जुन के वृक्ष अधिक संख्या में थे। इसलिए इस वन को 'कुकुभ' वन' कहा जाता था। देवों, इन्द्रों और मनुष्यों ने यहीं पर भगवान् का दीक्षाकल्याणक मनाया था। इसके चार वर्ष पश्चात् इसी वन में कार्तिक शुक्ला तृतीया को केवलज्ञान हुआ। यहीं प्रथम समवसरण लगा और यहीं धर्मचक्र प्रवर्तन हुआ। अतः भक्त जनता में यह तीर्थक्षेत्र के रूप में प्रख्यात हो गया। पश्चात् इस वन के स्थान में ग्राम बस गया और वह कुकुभ वन के नाम पर ककुभग्राम कहलाने लगा।
यहाँ भगवान् महावीर का भी समवसरण आया था। जब भी भगवान् का विहार वैशाली से श्रावस्ती की ओर हाता था तो मार्ग में इस स्थान पर भी पधारते थे। इसी प्रकार वैशाली से विहार करते हुए भगवान् काकन्दी, ककुभग्राम होते हुए श्रावस्ती जाते थे। यह नगर श्रावस्ती से सेतव्य, कपिलवस्तु, कुशीनारा, हस्तिग्राम, मण्डग्राम, वैशाली, पाटलिपुत्र, नालन्दा राजमार्ग पर था।
पूर्वी भारत के इस महत्त्वपूर्ण राजमार्ग पर अवस्थित होने के कारण नगर की समृद्धि भी निरन्तर बढ़ रही थी। देश-विदेश के सार्थवाह बराबर आते-जाते रहते थे। भगवान् पुष्पदन्त का दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक का स्थान होने के कारण सुदूर देशों के भी यात्री यहाँ तीर्थ वन्दना को आते रहते थे। इसलिए अति प्राचीन काल
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