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स्वरूप सम्बोधन का वैशिष्ट्य और स्वरूपदेशना
-डा० नरेन्द्र कुमार जैन,
विभागाध्यक्ष संस्कृत, गाजियाबाद ‘स्वरूप-सम्बोधन' आचार्यश्री भट्ट अकलंक देव द्वारा विरचित एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक दार्शनिक कृति है। इसके अतिरिक्त उन्होंने स्वतंत्र ग्रंथों के साथसाथ टीका ग्रन्थों की भी रचनाएं की हैं। स्वतंत्र कृतियों में लघीयस्त्रय सवृत्ति, न्यायविनिश्चय सवृत्ति, सिद्धि विनिश्चय सवृत्ति, प्रमाण संग्रह, स्वरूप-सम्बोधन, बृहत्त्रयम्, न्याय चूलिका और अकलंक स्तोत्र हैं। टीका ग्रन्थों में तत्त्वार्थवार्तिक और अष्टशती हैं। आचार्य भट्टाकलंक देव जैन न्याय और दर्शन के प्रखर तार्किक आचार्य माने जाते हैं। जैन न्याय के जनक आचार्य समन्तभद्र द्वारा पूर्व परम्परा से प्राप्त चिंतन के आधार पर प्रमाण, नय, अनेकान्त, स्याद्वाद और सप्तभंग आदि जैन न्याय और दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों पर उन्होंने जो सुदृढ़ नींव स्थापित की थी उस पर आचार्य अकलंक ने भव्य प्रासाद निर्मित किया । युग प्रधान, जैन न्याय के प्रतिष्ठापक आचार्य अकलंक देव को परवर्ती आचार्यों ने सकल तार्किक चक्रचूड़ामणि, स्याद्वाद केसरी, तर्कभूबल्लभ, तर्काब्जार्क आदि विशेषणों से विभूषित किया है।जैनेतर दर्शनों, विशेष रूप से बौद्ध और न्याय-वैशेषिकों का यदि कोई तर्क बल से जैनाचार्यों में डटकर सामना कर सका तो वह आचार्य अकलंक देव हैं।
आचार्य अकलंक देव की सभी कृतियाँ जैन-दर्शन और न्याय के हार्द को उद्घाटित करने वाली महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं, परन्तु जैन अध्यात्म-दर्शन को प्रकाशित करने वाली ‘स्वरूप सम्बोधन’ कृति अनुपमेय है। इसमें अनेकान्तात्मक आत्मतत्त्व का स्याद्वाद पद्धति से दार्शनिक और तार्किक शैली में विश्लेषण जैन अध्यात्म दर्शन के लिए महत्वपूर्ण देन है। आचार्य विशुद्धसागर जी महाराज द्वारा अपने प्रवचनों के माध्यम से इसी महान् कृति पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है, जिसे 'स्वरूप-देशना' के नाम से अभिहित किया जाता है। _ 'स्वरूप-सम्बोधन' मं कुल 25 कारिकाएं हैं। अपने नाम के अनुरूप इस ग्रन्थ में अपने आत्म-स्वरूप को समझाने के लिए सम्बोधित किया गया है। प्रथम कारिका में मंगलाचरण किया गया है। इस मंगलाचरण में परमात्मा को अनेकान्तत्मक सिद्ध कर, नमस्कार किया गया है। वह परमात्मा कर्मों से मुक्त तथा सम्यग्ज्ञान आदि से अमुक्त हैं इस तरह एक रूप, अक्षय, ज्ञानमूर्ति परमात्मा स्वरूप देशना विमर्श
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