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________________ आपकी चर्चा अरू भावों में प्रत्येक पल आगम अध्यात्म, वीतरागता एवं विशुद्धि झलकती है। आपका गहन तलस्पर्शी तात्विक चिंतन आपको उत्कृष्ट क्षयोपशमधारी सफल दार्शनिक घोषित करता है। आपकी तात्विक विवेचना विद्वानों को भी विचारने को विवश कर देती है। जहाँ तक आचार्य श्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के सम्बन्ध में विचार करना है उसमें स्वरूप-देशना मेंजो चिंतन उन्होंने प्रस्तुत किया है उसकी कुछ वानगी यहाँ प्रस्तुत है 'निश्चय नय समझने के लिये था, मोक्ष जाने के लिए नहीं था।' नाविक के तीर की तरह छोटे-छोटे शब्दों में संसार भर का तत्त्व भर दिया है। जिसे (शरीर को) राख होना है उससे राग कैसा या नष्ट होने वाले के पीछे कष्ट कैसा। 'आँखें फिर जाए पर आँख फिर न जाए तो भगवान् बन जाए। जिस निश्चय नय को जीव भूतार्थ कह रहा है- वह निश्चय नय भी मेरे लिए अभूतार्थ है। नय, समझने के लिए था मोक्ष जाने के लिए नहीं था। ज्ञानियो सुनो! फैलाना नहीं सबको जोड़ना सीखो। तोड़ने की नहीं जोड़ने की भाषा बोलो। अब ध्यान दो। भेद रत्नत्रय की आराधना से नहीं अभेद रत्नत्रय की अराधना से ही मोक्ष मिलेगा | भेद से अभेद की ओर तो चलना पर अभेद में भेद मत करा देना। स्वरूप सम्बोधन के आलोक में आचार्य श्री के विशाल अध्यात्मिक चिंतन की झलक मिलती है जो उनके आचरण में भी शत-प्रतिशत खरी उतरती है। ___परम पूज्य आचार्य श्री द्वारा वैदिक दर्शन का अध्ययनधार्मिक ग्रंथों के नाम न्याय ग्रंथ भगवत् गीता ना. .... सांख्य कारिका रामचरित मानस .. तर्क संग्रह भगवत पुराण न्याय दर्शन महाभारत आत्मानात्म विवेक मनु स्मृति . पातांजलि योग दर्शन वेद उपनिषद् स्वरूप देशना विमर्श 45 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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