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________________ नाममाला कोश के लेखक धनंजय कवि ने नाममाला के अंत में, आचार्य अकलंकदेव का उल्लेख करते हुए लिखा प्रमाणमकलंकस्य पूज्यपादस्य लक्षणम्। धनंजयकवे काव्यं रत्नत्रयमपश्चिमम्॥ ब्रह्मचारी अजितसेन ने हनुमच्चरित ग्रंथ में लिखा कि अकलंक ने बौद्धों की बुद्धि को, वैधव्य कर दिया। अकलंकगुरु यादकलंकपदेश्वरः। बौद्धानां बुद्धिवैधव्यदीक्षागुरुरुदाहृतः। सन् 1183 के एक शिलालेख में, अकलंक की शास्त्रार्थ विजय का उल्लेख इस प्रकार किया गया है तस्याकलंकदेवस्य महिमा केन वर्ण्यते। यद् वाक्यखंगघातेन हतो बुद्धौ विबुद्धिसः॥ श्रवणबेलगोला के अभिलेख नं0 108 में अकलंक देव को मिथ्यात्व अंधकार दूर करने के लिए सूर्य के समान बतलाया गया है ततः परं शास्त्रविदां मुनीनामग्रेसरोऽभूदकलंकसूरिः। मिथ्यान्धकारस्थगिताखिलााः प्रकाशिता यस्य वचौमयूखैः॥ वहीं एक अन्य अभिलेख में अकलंक देव द्वारा बौद्धादि एकान्तवादियों को परास्त किये जाने की बात कही गयी है भट्टाकलंकोऽकृत सौगतादिदुर्वाक्यपंकैस्सकलंकभूतं। जगत्स्वनामेव विधातुमुच्चैः सार्थ सामन्तादकलंकमेव॥ इस प्रकार अनेक परवर्ती आचार्यों द्वारा प्रशंषित अकलंकदेव की लेखनी वर्तमान में भी अनेक आर्ष ग्रन्थों के परिशीलन, अनुशीलन को अपनी प्रखर देशना से समन्वित करने वाले आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी द्वारा परिशीलित की जा रही है। लघु किन्तु महत्वपूर्ण ग्रन्थ स्वरूप-सम्बोधन आचार्य अकलंकदेव कृत होने के सम्बन्ध में भी, विद्वानों में मतैक्य नहीं रहा । यही कारण है कि डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य की महत्वपूर्ण कृति, तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' में अकलंकदेव कृत शास्त्रों में इस ग्रन्थ का नाम नहीं है। अक्टूबर 1996 में पूज्य (400 -स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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