________________ परम पूज्य प्रातः स्मरणीय आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी / जीवन बिन्दु // दिगम्बर जैन श्रमण-संस्कृति के सम्प्रति नामचीन अध्यात्म योगियों की श्रृंखला में परम पूज्य अध्यात्मयोगी श्रमणाचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज की कीर्ति पताका सम्प्रति साहित्य-संसार में सकल रूप से फहरा रही है। आप श्रमण-संस्कृति के परिचायक निर्लेप, निष्काम, दिगम्बर मुद्राधारी, श्रमण साधना के शुभ्राकाश में अध्यात्म के ध्रुव तारे, पंचाचार -परायण, शुद्धात्म- ध्यानी, शुद्धोपयोगी- श्रमण, स्वाध्यात्म- साधना के सजग प्रहरी, अलौकिक व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी, आगमोक्त श्रमण-चर्या पालक, समयसार के मूर्तरूप, निस्पृह श्रमण-भवनाओं से ओत-प्रोत, तीव्र आध्यात्मिक अभि- रुचियों, वीतराग परिणतियों एवं वात्सल्य मयी प्रवृत्तियों से पूरित प्रत्यग्-आत्मदर्शी चलते-फिरते चैतन्य-तीर्थ, 18 दिसम्बर 1971 को राजेन्द्र नाम से म.प्र. के भिण्ड जिले के ग्राम रूर में पिता श्री रामनारायण (सम्प्रति मुनि श्री विश्वजीत सागर जी), मातु श्रीमती रत्तीबाई की कुक्षि-कक्ष से उद्भूत, 21 नवम्बर 1991 को श्रमणाचार्य श्री विराग सागर जी से मुनि दीक्षा धारी, 31 मार्च 2007 (महावीर जयंती) औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में आचार्य पद से अलंकृत हैं। Designed & Printed By: Chandra Copy House, Agra dicions intematon For Personal & Private Use Only la 9412260879 www.jane library.org