________________
विरागसागर जी के ससंघ सान्निध्य में गजरथोत्सव हुआ था। मैं 1990 में क्षुल्लक था, वह हमारी क्षुल्लकावस्था याद करने लगे मैंने कहा कि 'नमोऽस्तु शासन जयवंत हो' वे भावुक हो गये। आप समय लें समय बलवान है। पृ०
278 52. श्री, श्रीमान, श्रीमती व श्री मति वालों का माहात्म्य-'श्री' सम्पन्न श्रीमानों की,
व श्रीमतीयों की आज पूजा -महत्ता दिखायी पड़ती है। यह तो विषय-कषाय वालों की पूजा है सही पूजा तो उनकी है जो श्री-मती (श्रेष्ठ बुद्धि) वाले हैं वे कोटि-कोटि जीवों पर/दुनियां वालों पर राज्य करते हैं। मुक्तिवधु रूपी
श्रीमती को लेने जाओ तो शिव राज्य मिलेगा ही। पृ० 279 .. 53. जिनवचन परमौषधि एवं जिन भारती गौ का अमृततत्व पय- मूलाचार
ग्रंथानुसार कथन हैजिणवयणमोसहमिणं विसयसुह विरेयणं अमिदभूद। ..
जर मरण वाहि वेयण खयकरणं सव्व दुक्खाणं॥ 95॥ जिन वचन परम औषधि रूप जन्म मरण का क्षय करने वाले हैं। व्याधिहर्ता, दुःखनाशक व विषय सुख विरेचक हैं। हम आज स्वार्थवश मुनिसुव्रत नाथ जी को शनिग्रह की शांति हेतु मात्र पूज रहे हैं। हमारे 3 देवता ही इष्ट हैं- इष्ट, अबाधित व अभिमत रूप 24 तीर्थंकर || इष्ट - वीतरागी सर्वज्ञ देव, अबाधित जो किसी से खण्डित नहीं हो, अभिमत- त्रिलोक पूज्य ॥ जैसे गाय के शुद्ध घृत में स्वर्ण तत्व होता है। पैर के तलवे में लगाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है उसी प्रकार प्रमेयकमल मार्तण्ड' अनुसार जिन भारती रूपी गौ के 4 अनयोग रूप थनों से मंथित तत्त्व अमृत रूप से कैवल्य ज्योति प्राप्त होती है। (पृ०
279-80-81) 54. कर्म के पर्यायवाची- जैन आयुर्वेद शास्त्र कल्याणकारकानुसार विधि/ब्रह्मा/
अर्थात् भाग्य अर्थात् कर्म और कृतान्त ये कर्म के पर्यायवाची हैं। हम अपने पूज्य परमेष्ठी, जिनवाणी के प्रति दृढ़ श्रृद्धान रखें जहाँ घना आंनद है। पृ०
284 55. मंत्र और तंत्र का माहात्म्य- ललितपुर की घटनानुसार किसी श्रोता ने आचार्य
श्री से कहा कि आप प्रवचन के समय श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हो वह मंत्र कौन सा है। मैंने कहा कि हे मुमुक्षु मैं छोटे-छोटे मंत्र नहीं करता मैं तो तंत्र भी करता हूँ वह भी छोटा नहीं समाधि तंत्र हमारे यहाँ श्रेष्ठ तंत्र है। जब बाहर के
232
-स्वरूपदेशना विमर्श
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org