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(10) मोहाविष्ठ' पृष्ठ 32- पंक्ति -21 (11) ‘ज्ञानियो' पृष्ठ 36- पंक्ति -13 (12) माताओ' पृष्ठ 48- पंक्ति-18 (13) युवाओ'
पृष्ठ 83- पंक्ति -12 (14) अहोश्रावको पृष्ठ 132- पंक्ति -16 (15) भेषाविष्ठ' पृष्ठ 286- पंक्ति-3 (16) भैंसाविष्ठ पृष्ठ 286- पंक्ति -13 3. सैद्धान्तिक विशिष्ट शब्द एवं श्रीमत् जैन शासन के 18 पर्यायवाची___ आचार्य श्री ने स्वरूप देशना ग्रंथ में कुछ सैद्धान्तिक शब्दों का भी उद्घाटन करते हुए श्रीमत् जैन शासन के नमोऽस्तु शासन सहित 18 पर्यायवाची प्रस्तुत किये हैं।जो कि निम्नप्रकार ध्यातव्य हैं। यथा- . पीयूष देशना-पृ० 01, सर्वज्ञ शासन-पृ० 09, नमोऽस्तु शासन-पृ० 09, वीतराग श्रमण संस्कृति- पृ० 09, अक्षय परमात्म- पृ० 17, ज्ञानमूर्ति-पृ० 20, जगत कल्याणी-पृ० 60, स्याद्वाद वाणी-पृ0 137 पर्यायवाची- निर्दोष श्री जिनवीर चन्द्रशासन, सर्वज्ञ शासन,2 जितेन्द्र शासन,3 निष्कलंक शासन,4 अकलंक शासन,5 स्याद्वाद शासन,6 अनेकान्त शासन,7 अर्हन्त शासन,8 जिनशासन, नमोऽस्तु शासन,10 पूत शासन,11 सिद्ध शासन,12 सत्य शासन,13 अमित शासन,14 वीतराग शासन,15 क्षेमकृत शासन,16 पुण्य शासन,17 व्यक्त शासन,18 - पृष्ठ 399 'मूलाचार' ग्रंथ की संस्कृत टीका में आचार्य श्री वसुनंदि जी ने श्री जिनेन्द्र के शासन को नमोस्तु शासन कहा है-यथा- “नमोऽस्तूनां शासने” गाथा 151, (संस्कृत टीका) अर्थात् शासन का जो कथन है वही नमोऽस्तु शासन है यह जिनशासन का पर्यायवाची है। 4. विषय विवेचनार्थ संदर्भग्रंथों की नामावली-आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ने स्वरूप देशना ग्रंथ को बतौर प्रमाणीकरण के रूप में विषय पुष्टि हेतु लगभग 60 ग्रंथों के नामोल्लेख किये हैं। वह निम्न प्रकार हैं(1) श्लोक-कालेकल्पशतेऽपि.....संभ्रान्तिकरणपटुः ॥133 ॥ रत्नकरण्ड
श्रावकाचार- आचार्य समन्तभद्रजी, स्वरूपदेशना पृ० 17, उपसर्गे र्दुभिक्षे..... सल्लेखनामार्याः ॥ 122 || र० क० श्रावकाचार, आचार्य समन्तभद्रजी- स्व०
दे० पृ० 295 स्वरूप देशना विमर्शJain Education International
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