SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काल द्रव्य- काल द्रव्य प्रत्येक पदार्थ में होने वाले परिवर्तन परिणमन का हेतु है। यही वह द्रव्य है जिसके निमित्त से अन्य द्रव्य अपनी पुरानी अवस्था को छोड़कर प्रतिक्षण नया रूप धारण करते हैं। यह भी आकाश की तरह अमूर्त और निष्क्रिय है। किन्तु उसकी तरह एक और व्यापक न होकर असंख्य है। जो पूरे लोकाकाश के प्रदेशों पर रत्नों की राशि की तरह भरे पड़े हैं। काल द्रव्य की यह भूमिका है परिणमनगत इस आलम्बन को वर्तना कहते हैं। यह काल द्रव्य का मुख्य लक्षण है। इसे ही निश्चय काल कहते हैं। इसके अभाव में परिणमन नहीं हो सकता । समय, पल, घड़ी, घण्टा, मिनट आदि व्यवहार काल हैं। समयकाल की सूक्ष्मतम् इकाई है। एक पुद्गल परमाणु को मन्द गति से आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक जाने में जो काल लगता है उसे समय कहते हैं। नया-पुराना, बड़ा-छोटा, दूर-पास आदि का व्यवहार काल द्रव्य के ही आश्रित है। इसका अनुमान सौर मण्डल एवं घड़ी आदि के माध्यम से लगाया जाता है। द्रव्यों के होने वाले परिणमन से भूत भविष्य और वर्तमान का व्यवहार भी इसी काल के आश्रित है। ******* 186 -स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy