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________________ स्वरूप देशना के अन्तर्गत कषाय एवं परिणाम विशुद्धि के संदर्भ ___-पं० श्री वीरेन्द्र कुमार जैन, शास्त्री ___महामंत्री- आगरा दिगम्बर जैन परिषद जैन जगत् के महान् न्यायवादी सिद्धान्तवेत्ता आचार्य श्री भट्ट अकलंक देव विरचित "स्वरूप-सम्बोधन” ग्रन्थराज जो मात्र 25 श्लोक प्रमाण है, जिसके एकएक पद्य में जिनागम का गूढ़तम रहस्य भरा है। ऐसे महानतम् ग्रन्थराज पर आज 21वीं सदी के दिगम्बर जैन समाज के महानतम गौरवशाली युवा श्रमणाचार्य जिनकी जिह्वा पर साक्षात माँ जिनवाणी विराजती है। कण्ठ से अविरल सरस्वती प्रवाहित होकर लोक में मिथ्यात्व-अदर्शन-असंयम को दूर कर जन-जन को रत्नत्रय मार्ग पर लगाती हैं, आपके द्वारा भव्य जीवों को ऐसा सम्बोधन दिया गया है जिसका श्रवण कर भव्यात्मा आत्म-विभोर हो जाता है। जब स्वरूप सम्बोधन' पर आचार्य श्री की देशना प्राणी मात्र के हृदय के विकार मिटाने में इतनी सक्षम हैं, तो जिस समय साक्षात तीर्थंकर भगवंतो की देशना श्रवण कर गणधर देव जिनवाणी का व्याख्यान करते होंगे। तब समवसरण सभा में क्या अलौकिक आनन्द के साथ शान्ति मिलती होगी? यह तो कभी भगवन्त तीर्थंकर सीमंधर स्वामी जी के समवसरण में जाने के बाद ही साक्षात् अनुभव होगा। लेकिन धन्य हैं वे लोग जिनको तीर्थंकर प्रभू के इन लघुनन्दन श्रमणाचार्य श्री की देशना सुनने को मिलती है। गुरूदेव की सभा भी लघु समोवशरण से कम नहीं होती है और संघस्थ विराजे निर्ग्रन्थ मुनिवर भविष्य के साक्षात् गणधर हैं । भावों की विशुद्धि, कषायों की मन्दता, परिणामों की निर्मलता, आचार्य श्री के श्रीचरणों में बैठकर जितनी मिलती है, पंचमकाल में अन्यत्र दुर्लभ है। धन्य हैं ये निर्ग्रन्थ तपोधन- मुनिराज जो आज तीर्थंकर प्रणीत जिन शासन को शाश्वत् बना रहे हैं। शासन को जयवंत कर रहे हैं। बाल-गोपाल वृद्धजन को बता रहे हैं कि विश्व में एक मात्र निर्ग्रन्थ मार्ग ही मोक्षमार्ग है। विश्व में एक मात्र निर्ग्रन्थ तपोधन ऋषिगण ही नमोस्तु के पात्र हैं। जिन शासन ही यथार्थ में सत्य शासन है, जो शाश्वत् है,शाश्वत् रहेगा। ___आगम में मात्र सुना था कि निर्ग्रन्थ तपोधन ऋषिगण जहाँ-जहाँ विचरण करते हैं वहाँ-वहाँ धन्य-धान्य में अभिवृद्धि के साथ-साथ सर्व ऋतु के फल-फूल उत्पन्न हो जाते हैं। उनके शरीर की प्रशस्त वर्गणाऐं जगत् में शान्ति का संचार करती हैं। धन्य हैं श्रमणाचार्य श्री के दादा गुरू वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमल सागर जी गुरूदेव, जिनका सानिध्य अलौकिक शांति स्थापित करता था । हे जगत् -स्वरूप देशना विमर्श । 168) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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