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दोनों सत्य हैं। दोनो की सत्ताा को स्वीकार करोगे तभी आप एक को हेय कह पाओगे और दूसरे को उपादेय कह पाओगे । हेय भी सप है, उपादेय भी सत्रूप है; क्योंकि अवस्तु में न हेय भाव होता है न उपादेय भाव होता है। वही वस्तु भूतार्थ है, वही अभूतार्थ है। किं भूतार्थं किं अभूतार्थं । भूतार्थ भी अभूतार्थ है, अभूतार्थ भी भूतार्थ है।
निश्चयमिह भूतार्थं, व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थम्। भूतार्थबोधविमुखः प्रायः सर्वेऽपि संसारः॥ 5॥
___-पुरुषार्थ सिद्ध ओहो! एक जीव निश्चय को भूतार्थ कहता है, व्यवहार को अभूतार्थ कहता है। कोई व्यवहार को भूतार्थ कहे, कोई निश्चय को अभूतार्थ कहे। भूतार्थ-बोधविमुखः' भूतार्थ के बोध से ही विमुख है। प्रायःसर्वेपि संसारः सत्यार्थ को जानने वाले लोग इस लोक में अंगुलियों पर गिनने लायक ही हैं।
विषय को बोल देना भिन्न विषय है और विषय को समझना भिन्न विषय है। आइए, सिद्धान्त की भाषा आपने सुन ली है, अब आपकी भाषा प्रारम्भ करें, तब आपको समझ में आएगा। भूतार्थ, अभूतार्थ, सत्यार्थ, असत्यार्थ । किं सत्यार्थ किं असत्यार्थं । क्या सत्यार्थ है, क्या असत्यार्थ है।
पहले संसारी जीव की व्याख्या कर लें, फिर परमार्थ की बात करते हैं। एक जिसे भूतार्थ कहता है, दूसरा उसे अभूतार्थ कह रहा है। तो क्या भूतार्थ है, क्या अभूतार्थ है? प्रयोजन भूत क्या है, अप्रयोजनभूत क्या है? ___ ज्ञानियो! भूतार्थ को समझना है तो मोह को छोड़ना पड़ेगा। वही भूतार्थ, वही अभूतार्थ । यह मोह के लिए है, यह मोह की भाषा है। भूतार्थ भूतार्थ ही है, अभूतार्थ अभूतार्थ ही है। ज्ञानी! निर्मोह की व्यवस्था है। जिस व्यक्ति को घृत पसंद है और वह स्वस्थ पुरुष है, उस व्यक्ति के लिए घृत भूतार्थ है कि अभूतार्थ है? भतार्थ है और जिसकी पाचन शक्ति कमजोर हो गयी है, जिसे पानी भी नहीं पचता हो, उस व्यक्ति के लिए घृत भूतार्थ नहीं अभूतार्थ है। बहिः प्रमेय की दृष्टि से पदार्थ मिथ्या और सम्यक मिथ्यात्व भाव है, भाव प्रमेय की दृष्टि से पदार्थ सम्यक रूप ही है। घबराना नहीं, ये क्या है? लेखनी है बहिः प्रमेय की अपेक्षा से । प्रमेय ज्ञेय अर्थात् जानने योग्य द्रव्य।
पाषाण की एक प्रतिमा को विकृत आकार में खड़ा कर दिया। जिसको अरहंत इष्ट हैं वह विकृत प्रतिमा को देखकर मुख मोड़ लेगा । जिसको यही आकार पसन्द स्वरूप देशना विमर्श
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