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________________ 19. पं० जवाहर लाल जैन, सिद्धान्तशास्त्री - स्याद्वाद' पृष्ठ 123 20. षड्दर्शन समुच्चय / पृष्ठ 365/ज्ञानपीठ (सम्पादन अनुवाद- पं० महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य 21. पं० दरबारी लाल, न्याय प्रदीप' पृ0 12 22 (क) सामान्य विशेषात्मा तदर्थो विषयः परीक्षामुखसूत्रम् 4/1 (ख) प्रमाणस्य विषयो द्रव्य पर्यायात्मकं वस्तु । प्रमाणमीमांसा, सूत्र 1/1/31 23. 'अर्थक्रिया सामर्थ्यात् ।' प्रमाणमीमांसा, सूत्र 1/1/31 24. ज्ञानप्रमाणमात्मानं ज्ञानं ज्ञेयप्रमं विदुः। लोकालोकं यतो ज्ञेयं ज्ञानं सर्वगतं ततः ॥ 19 || योगसारप्राभृत 25. यद्यात्मनोऽधिकं ज्ञानं ज्ञेयं वापि प्रजायते। . लक्ष्य-लक्षण भावोऽस्ति तदानी कथमेतयोः ॥201 || योगसारप्राभृत 26. क्षीरक्षिप्तं यथा क्षीर मिन्द्र नीलं स्वतेजसा। ज्ञेयक्षिप्तं तथा ज्ञानं ज्ञेयं व्याप्नोति सर्वतः ||21 ||योगसारप्राभृत 27. चक्षुर्गृह्वद्यथा रूपं रूपरूपं न जायते। ज्ञानं जानन्तथा ज्ञेयं ज्ञेयरूपं न जायते ॥ 22 || योगसारप्राभृत 28. दवीयांसमपि ज्ञानमर्थं वेत्ति निसर्गतः। अयस्कान्तः स्थितंदूरे नाकर्षति किमायसम् ॥23 ॥ योगसारप्राभृत 29. स्वरूप देशना, पृ० 116 30. वहीं, पृ० 121 31. वहीं, पृ0 124 32. वहीं, पृ० 210 33. वहीं, पृ० 317 34. वहीं, पृ० 104 ******* 140 -स्वरूपदेशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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