________________
अनुक्रमणिका
MAIN MEnternessseeeeescommons 88000000000000000000003083333389880pen
&0000000000000000000
000000000000000066
3-11
12-23
24-27
क्र० नाम एपाय
गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी 'मंगलाशीष' एड. श्री अनूप चन्द्र जैन
सम्पादकीय एड. राजेन्द्र कुमार जैन
मनोभावना पं० श्री रतनलाल शास्त्री, इन्दौर "स्वरूप देशना" 1. . प्रो. श्री श्रीयांश कुमार सिंघई, जयपुर
"स्वरूप संबोधन परिशीलन के परिप्रेक्ष्य में द्रव्य स्वरूप
की अवधारणा" 2. पं० श्री शिवचरन लाल जैन, मैनपुरी (उ० प्र०)
"तत्त्व निर्णय में न्याय-शास्त्र की उपयोगिताः
स्वरूप देशना के परिप्रेक्ष्य में" 3. प्राचार्य डा० श्री शीतल चन्द्र जैन, जयपुर (राज०). " "स्वरूप देशना की विधि-निषेध शैली पर एक दृष्टि" 4. प्रो. डा० श्री रतनचन्द्र जैन, भोपाल (म० प्र०) * "स्वरूप देशना के परिप्रेक्ष्य में विशुद्धभावों की उत्पत्ति
में सम्यग्ज्ञान की भूमिका" 5. प्रो० डा० श्री फूलचन्द्र जैन, प्रेमी, दिल्ली
"परभाव से भिन्न आत्मस्वभावःस्वरूपदेशना के परिप्रेक्ष्य में" 6. पं० श्री निर्मल जैन, सतना (म० प्र०)
"आचार्य श्री अकलंकदेव का व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व" ____7. एडवोकेट श्री अनूप चन्द्र जैन, फिरोजाबाद (उ० प्र०)
. "आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी का व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व" 8. डाव श्री नरेन्द्र कुमार जैन, गाजियाबाद
"स्वरूप संबोधन का वैशिष्ट्य और स्वरूप देशना" 9. डा० श्री अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली
"स्वरूप देशना में क्रांतिकारी आध्यात्मिक सूक्तियाँ" 10. 'डा० श्री सुशील चन्द्र जैन, मैनपुरी (उ० प्र०)
"स्वरूप देशना में चेतन द्रव्य की स्वतंत्रता" 11. डा० श्री सुमत कुमार जैन, जयपुर
"स्वरूप संबोधन में वर्णित आत्म स्वरूप की विभिन्न विवक्षा"
28-30
31-36
37-42
43-54
55-64
65-69
70-77
78-83
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org