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________________ जो रात्रि भोजन करने वाले को लगता है और विश्वास रखो, यदि मैं वापिस नहीं आया तो मैं पंचमकाल का मनुष्य बनूँ । पद्म पुराण । 96. किसी को कितना भी अपना बना कर रखो, परन्तु अपना कोई नहीं है। 97. ईर्ष्या से न तेरा काम बनता है, न जिस पर ईर्ष्या कर रहा है उसका काम बिगड़ता है । बनता या बिगड़ता क्षयोपशम से है । 98. वस्तु की प्राप्ति ईर्ष्या से नहीं होती, लाभान्तराय कर्म के क्षयोपशम से होती है। 99. सुन्दर को सुन्दर देखना भी असंयम है और असुन्दर के प्रति असुन्दर भाव लाना भी असंयम है । 100. वस्त्र से रहितपना यदि संयम हो गया तो प्रकृति में जितने भी निर्वस्त्र हैं, वे सब संयमी हो जाऐंगे। 101. जब भी तुमको जिनदेव मिलें, निर्ग्रन्थ गुरू मिलें, भगवती जिनवाणी मिले तो अपने इन्वर्टर / बैटरी को चार्ज कर लो। 102. भक्ति भी गुरु की हो जाए और तीर्थंकर वर्द्धमान के शासन का सिद्धान्त भी न टूटे, ऐसी भक्ति करो । 103. एक महीने के उपवास कर लेना बहुत कठिन नहीं है, नीरस भोजन करना इतना कठिन नहीं है, जितना निन्द्रा का रस पान छोड़ना कठिन है । 104. जिसकी दुर्गति सुनिश्चित हो चुकी है, उसकी दुर्बुद्धि नियम से होगी। जिसकी दुर्बुद्धि चल रही है, उसकी दुर्गति सामने खड़ी है। 105.यदि गति सुधारना चाहते हो तो अपनी दुर्गति को सुधार लो। दुर्गति सुधर मति सुमति हो गयी, तो गति सुगति स्वयमेव हो जायेगी । · 106.प्रवचन सभा में चेहरा नहीं मुस्कराता, मन मुस्कराता है और नाट्यशाला में मन नहीं मुस्कराता, चेहरा मुस्कराता है। 107. भावकर्म जैसा होगा, वैसा द्रव्य कर्म का आस्रव होगा। जैसा कर्म बन्ध होगा, विपाक भी उसका वैसा ही होगा। सर्वज्ञ जिनेन्द्र के शासन की आज्ञा स्वीकार करो। 108. ज्ञान हीन चारित्र का भी नाश होता है और चारित्र हीन ज्ञान का भी नाश होता है । शिवत्व की प्राप्ति चाहते हो तो ज्ञानी दोनों का संयोग करो। अंधा और लंगड़ा मिल जाऐं तो दोनों की रक्षा हो सकती है। जलते जंगल से बाहर निकल सकते हैं । स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only 131 www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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