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सकता है? जो शरीर को शुद्ध करने का विचार रखता है, उससे बड़ा अज्ञ जगत में कोई हो ही नहीं सकता। शरीर को शुद्ध करने का विचार आज से समाप्त कर देना। लौकिक शद्धि तो हो सकती है, लेकिन परमार्थ भूत कोई शुद्धि शरीर की नहीं होती। देह की शुद्धि हो ही नहीं सकती, क्या करोगे? सुगन्धित श्रेष्ठ से श्रेष्ठ द्रव्य इस शरीर के सम्पर्क मात्र से अपवित्र हो जाते हैं। आप लोग भोजन करते हो, मधुर पेय पीते हो । ओ हो! तनिक भी शर्म नहीं आती। कितने कीमती द्रव्य आप पेट में रख लेते हो और ऐसे द्रव्यों को तुम सुबह छोड़कर आ जाते हो। थोड़ा संभाल कर तो रखा करो। ओ हो! पूरे जीवन की कमाई को झोंक दिया, नष्ट कर दिया! समझो जरा, मैं कुछ कह रहा हूँ।
पृष्ठ 156 पर, पर्याय में लिपटा जीव किस प्रकार परिणमता है, बताते हैं..
"सुनते जाओ! जिनके घरों में व्यर्थ की वस्तु रखी हों, सब निकाल देना, अलग कर देना, कहीं ऐसा न हो जाऐ, इसी राग में कहीं आयु बंध हो गया तो उन्हीं गंदे कपड़ों में कही कीड़ा बनकर न आ जाएं? जो मैं कह रहा हूँ वह आप सब जानते हैं। मैं तो याद दिला रहा हूँ और तो और क्या यां तो अपने किसी अंग विशेष पर तुझे राग है, अपने शरीर को ही घूर-चूर के देखता है,यदि बंध अबाधकाल आ गया तो, हे मुमुक्षु! अपने शरीर के उस अंग में आकर कीड़ा बन जायेगा | स्वयं के ही शरीर में कीड़ा बन जाएगा और एक साथ दो पर्यायों का संस्कार होगा। इधर मरण चल रहा था। ओ हो! इतना सुन्दर शरीर अब कब मिलेगा मुझे? मैं कितना सुन्दर था। साँवला था, सुन्दर लगता था न तू? किसे सुना रहा है? तू सुन्दर है, कि ये चर्म सुन्दर है? अहो चर्मकार! तू चमड़े की सुन्दरता को देखकर सुन्दर कह रहा है। परिणति सुन्दर हो जाए तो चमड़े की सुन्दरता की कोई आवश्यकता नहीं । मुमुक्षु! पर्याय के सुन्दर होने से निर्वाण नहीं मिलता, परिणति सुन्दर होने से निर्वाण मिलता है। पर्याय की सुन्दर तो वेश्याएं भी घूम रही हैं, पर्याय के सुन्दर तो नट-वट कितने घूम रहे हैं, पर्याय के सुन्दर तो अनेक नेता-अभिनेता घूम रहे हैं। पर्याय के सुन्दर होने से मोक्षमार्ग बनता होता, तो पता नहीं आज तक कितने लोग मोक्ष चले गये होते । पर्याय के सुन्दर होने से मोक्ष नहीं होता है, परिणति के सुन्दर होने से मोक्ष होता है। मत लगा देना अपना पूरा जीवन पर्याय की सुन्दरता के लिए। इसलिए आज से भैया! चेहरे को सजाना बंद कर दो। सजा सको तो चेहरेवान को सजाना। जितना चेहरावान बिगड़ा होगा, उतना ही चेहरा सजा होगा। अब तो मैंने आपको बता दिया सबके सामने । जो जितना सज कर आए, बस बिना पूछे समझ जाना। अनुमान ज्ञान भी प्रमाण है। "साधनात् साध्य विज्ञानमनुमानम्।" * साधन से स्वरूप देशना विमर्श
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