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________________ 12 बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला (हे कालामो ! आओ, तुम किसी बात को केवल इसलिए मत स्वीकार करो कि यह बात अनुश्रुत है... कि यह बात परंपरागत है,... कि बात इसी प्रकार कही गयी है,. .. कि यह हमारे धर्मग्रंथ के अनुकूल है... कि यह तर्कसम्मत है,... कि यह अनुमानसम्मत है,... कि इसके कारणों की सावधानीपूर्वक परीक्षा कर ली गयी है,... कि इस पर हमने विचार कर इसका अनुमोदन किया है,.... कि कहने वाले का व्यक्तित्व भव्य (आकर्षक) है,... कि कहने वाला श्रमण हमारा पूज्य है। हे कालामो ! जब तुम स्वानुभव से अपने आप ही यह जानो कि ये बातें अकुशल हैं, ये बातें सदोष हैं, ये बातें विज्ञपुरुषों द्वारा निंदित हैं, इन बातों पर चलने से अहित होता है, दुःख होता है - तब हे कालामो ! तुम उन बातों को छोड़ दो । ) इस उद्धरण से तीन बातें रेखांकित होती हैं, पहली बात तो यह कि पिटक का अर्थ धर्मग्रंथ है। दूसरी बात कि भगवान का यह उपदेश मानव के स्वतंत्र चिंतन का महान घोषणापत्र है और तीसरी बात कि भगवान ने स्वानुभव पर अधिक जोर दिया। प्रज्ञा अर्थात् प्रत्यक्ष ज्ञान पर जोर दिया जो स्वसंतान में भावना कर पाया जा सकता है। इसे भावनामयी प्रज्ञा भी कहते हैं जो बुद्ध की विशेष देन है। यहाँ मैं विनय पिटक (आणा देसना) तथा अभिधम्म पिटक (परमत्य देसना) के अध्ययन की उपयोगिता पर विस्तार से न कह कर सुत्तपिटक (वोहार देसना) के अध्ययन की उपयोगिता पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहूंगा। हां, संक्षेप में विनय पिटक तथा अभिधम्मपिटक के अध्ययन की उपयोगिता पर भी कुछ बातें कहूंगा ताकि इन पिटकों की महत्त्वपूर्ण बातें यहां रेखांकित हो जायें। विनयपिटक के अध्ययन की उपयोगिता के बारे में राहुल जी ने लिखा है - "विनय पिटक भिक्षुओं के आचार नियमों को जानने के लिए तो उपयोगी है ही, साथ ही वह पुराने अभिलेखों तथा फाहियान, इ-चिंग आदि के यात्रा विवरणों को समझने के लिए बहुत सहायक है। यही नहीं विनय में तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक अवस्था की सूचक बहुत सी सामग्री मिलती है। यदि चीवर स्कन्धक और भिक्षुणी विभंग में आये वस्त्र-आभूषण आदि के नामों को हम सांची की मूर्तियों से मिलाकर पढ़ें तो हम उत्तरी भारत के स्त्री-पुरुषों की तत्कालीन वेश-भूषा का बहुत सा ज्ञान पा सकते हैं। शमथ स्कन्ध में आई शलाका ग्रहण की प्रक्रिया तो वस्तुतः समकालीन लिच्छविगणतंत्र के वोट लेने आदि की प्रक्रिया की नकलमात्र है।" (विनय पिटक, राहुलजी का अनुवाद, भूमिका पृ. 10) महावग्ग के भैषज्य स्कंधक में रोगों तथा औषधियों की चर्चा है । आजकल जब आयुर्वेद का महत्त्व बढ़ता जा रहा है और यह लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहा है - इसकी निस्संदेह उपयोगिता है । चीवर स्कंधक में प्रतिभावान तथा उपाय कुशल जीवक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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