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आगम
(२८-व)
“तन्दुलवैचारिकं” - प्रकीर्णकसूत्र-५ (मूलं+अवचूर्णि:)
-------- मूलं [१५]/गाथा ||५०-५४|| ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-२८-वृ), प्रकीर्णकसूत्र-[9] "तंदुलवैचारिक मूलं एवं विजयविमल गणि कृता अवचूर्णि:
प्रत
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॥५०
पक्षे चन्द्रवत् ये धार्मिकाः-धर्मयुक्ताः मनुष्यास्तेषां जीवितं-जीवितकालः सुजीवित-सुष्टु जीवितं ज्ञातव्यमिति ॥ ५॥ अथ शतवर्षायुःपुरुषस्य कियंतो युगायनादयो भवन्तीति दर्शयन्नाह| आउसो ! से जहा नाम ए केइ पुरिसे पहाए कयवलिकम्मे कयकोऊयमंगलपायच्छिते सिरसि पहाए कंठे& मालाकडे आविद्धमणिसुबन्ने अहयसुमहग्घवत्थपरिहिए चंदणोक्किन्नगायसरीरे सरससुरहिगंधगोसीसचंदणा|णुलित्तगत्ते सुइमालावन्नगविलेवणे कप्पियहारद्धहारतिसरयपालंबपलंबमाणे कडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगे
विजअंगुलिजगललियंगयललिघकयाभरणे नाणामणिकणगरयणकडगतुडियर्थभियभुए अहियरूवसस्सिरीए है| कुंडलुजोवियाणणे मउडदिन्नसिरए हारुत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबपलबमाणसुकयपडउत्तरिजे मुद्दियापिं
गलंगुलिए नाणामणिकणगरयणविमलमहरिहनिउणोवियमिसिमिसंतविरइयसुसिलट्ठविसिट्टलहआविद्धवीरवलए, किं बहुणा ? कप्परुक्खोविय अलंकियविभूसिए सुइपयए भवित्ता अम्मापियरो अभिवाद |विजा ॥ तए णं तं पुरिसं अम्मापियरो एवं वइजा-जीव पुत्ता ! वाससयंति, तंपियाई तस्स नो बहुयं भवइ, कम्हा ?, वाससयं जीवंतो वीसं जुगाई जीवइ, वीसई जुगाई जीवंतो दो अयणसयाई जीवइ, दो अयणसयाई जीवंतो छ उउसयाई जीवइ, छ उऊसयाई जीवंतो बारस माससयाई जीवइ, बारस माससयाई जीवंतो चउचीसं पक्खसयाई जीवइ, चउवीसं पक्खसयाई जीवन्तो छत्तीसं राईदियसहस्साई जीवह, छत्तीसं राईदियसहस्साई जीवंतो दस असीयाई मुहुत्तसयसहस्साई जीवह, दस असीयाई मुहुत्त
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दीप अनुक्रम [६५-७०
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मनुष्यायुः एवं तन्दुल-संख्या गणना
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