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आगम
(२४-वृ)
“चतु:शरण” - प्रकीर्णकसूत्र-१ (मूलं+अवचूर्णि:)
----- ------- मूलं ||३०-४०|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[२४/वृ], प्रकीर्णकसूत्र-[१] “चतु:शरण” मूलं एवं विजयविमलगणि कृता अवचूर्णि:
प्रत
सूत्रांक
||३०
-४०||
नाणाइएहिं सिवसुकखसाहगा साहुणो सरणं ॥ ३१ ॥ केवलिणो परमोहिविउलमइसुअहरा जिणमयंमि। आयरियउवज्झाया ते सवे साहुणो सरणं ।। ३२॥ चउदस दसनवपुबी दुवालसिक्कारसंगिणो जे अ। जिणकप्पअहालंदिअ परिहारविसुद्धिसाहू अ॥ ३३ ॥ खीरासवमहुआसव संभिन्नस्सोअकुट्ठवुद्धी अ। चारणवेउविपयाणुसारिणो साहुणो सरणं ॥ ३४ ॥ उज्झिअवयरविरोहा निच्चमदोहा पसंतमुहसोहा । अभिमयगुणसंदोहा हयमोहा साहुणो सरणं ॥ ३५ ॥ खंडिअसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा । सुपुरिसमणाभिरामा आयारामा मुणी सरणं ॥३६ ।। मिल्हिअविसयकसाया उज्झिअघरघरणिसंगसुहसाया । अकलिअहरिसविसाया साहू सरणं गयपमाया ॥ ३७॥ हिंसाइदोससुन्ना कयकारूण्णा सयंभुरुप्पण्णा।
दीप अनुक्रम [३०-४०
ॐ5555-45
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