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दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत्
“कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) .......... मूलं- सूत्र.[१७३] / गाथा.||-|| ....... मनि दीपरत्नसागरेण संकलित......"कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम्
प्रत
सूत्रांक/
गाथांक [१७३]
नाएगं देवदूसमादाय एगेणं पुरिससहस्सेणं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए ॥ १७३ ॥ अरहा णं अरिट्ठनेमी चउपन्नं राइंदियाई निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे,तं चेव सवंजाव पणपन्नगस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे सेवासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले, तस्सणं आसोयबहुलस्स पन्नरसीपक्खे णं दिवसस्स पच्छिमे भाए उजिंतसेलसिहरे वेडसपायवस्स अहे छद्रेणं भत्तेणं अपाणएणं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स जाव अणंते अणुत्तरे-जाव सबलोए सबजीवाणं भावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥ १७४॥ अरहओ णं अरिटुनेमिस्स अट्रारस गणा अट्ठारस गणहरा हुत्था ॥१७५॥ अरहओ णं अरिट्टनेमिस्स वरदत्तपामुक्खाओ अट्ठारस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया हुत्था ॥ १७६॥ अरहओ णं अरि| १ अहमेणं (क० कि०, क. सु०) २ चिचाहिं नक्सचेणं (क० कि०, क० सु०)
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दीप
अनुक्रम [१७४]
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