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दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत्
“कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) .......... मूलं- सूत्र.[१०२] / गाथा.||-|| ........ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......"कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम्
कल्प
बारसो
प्रत
सूत्रांक/
गाथांक [१०२]
वओ महावीरस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करिंति, तइए दिवसे चंदसूरदं॥ २७॥ सणिअंकरिंति, छठे दिवसे धम्मजागरियं करिति, इक्कारसमे दिवसे विइक्कंते निवत्तिए ।
असुइजम्मकम्मकरणे, संपत्ते बारसाहे दिवसे, विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडार्विति, उवक्खडावित्ता मित्तनाइनिययसयणसंबंधिपरिजणं नाए य खत्तिए अ आमंतित्ता : तओ पच्छा व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई पवराई वत्थाइं परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा भोअणवेलाए भोअणमंडवंसि । सुहासणवरगया तेणं मित्तनाइनिययसंबंधिपरिजणेणं नायएहिं खत्तिएहिं सद्धिं तं . विउलं असणपाणखाइमसाइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा एवं वा विहरंति॥१०२॥ जिमिअभुत्तुत्तरा गयाविअ णं समाणा आयंता चुक्खा परम.. १ जागरिंति (क० कि० क• सु०)
दीप
अनुक्रम [१०४]
का॥२७॥
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