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दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत्
“कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) ........... मूलं- सूत्र.[९१] / गाथा.||-|| ......... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......"कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम्
प्रत
सूत्रांक/
गाथांक [११]
कल्प० निप्फंदे निरयणे अल्लीणपल्लीणगुत्ते आवि होत्था ॥९१॥ तएणं तीसे तिसलाए खत्ति- बारसो
याणीए अयमेयारूवे जाव संकप्पेसमुप्पन्जित्था-हडे मे से गब्भे, मडे मे से गब्भे, चए मे से गब्भे, गलिए मे से गन्भे, एस मे गब्भे पुत्विं एयइ, इयाणिं नो एयइ त्तिक? ओहयमण-है। संकप्पा चिंतासोगसागरसंपविट्ठा करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमीगयदिट्ठिया है झियायइ, तंपि य सिद्धत्थरायवरभवणं उवरयमुइंगतंतीतलतालनाडइजजणमणुजं दीण|विमणं विहरइ ॥९२॥ तएणं से समणे भगवं महावीरे माऊए अयमेयारूवं अब्भत्थिअंदा पत्थिअंमणोगयं संकप्पं समुप्पन्नं वियाणित्ता एगदेसेणं एयइ, तएणं सा तिसला खत्तियाणी हद्वतुद्वा जाव हयहिअया एवं वयासी ॥९३॥-नो खलु मे गब्भे हडे जाव नो गलिए, मेगब्भे पुविंनो एयइ,इयाणिं एयइ त्तिकठ्ठ हट जाव एवं विहरइ, तएणं समणे भगवंमहावीरे गब्भत्थे चेव इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ- नो खलु मे कप्पइ अम्मापिउहि ।
दीप
अनुक्रम
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॥२४॥
SCRECAS
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