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दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत्
“कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) .......... मूलं- सूत्र.[१] / गाथा.||-|| ........... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......"कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम्
प्रत
सूत्रांक/
गाथांक [१]
कल्प० । विइकते वासावासं पजोसवेइ ॥१॥से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ ‘समणे भगवं महावीरे , बारसो ॥ ५८॥ वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पजोसवेइ ? जओ णं पाएणं अगारीणं ६
अगाराइं कडियाइं उक्कंपियाई छन्नाई लित्ताइंगुत्ताई घटाई मट्ठाई संपधूमियाइं खाओदगाई। खायनिद्धमणाई अप्पणो अट्टाए कडाइं परिभुत्ताइं परिणामियाई भवंति, से तेणटेणं, एवं वुच्चइ 'समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्वते वासावासं पज्जोसवेइ ॥२॥ जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्वते वासा-5 वासं पजोसवेइ, तहा णं गणहरावि वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पजो-3 सविंति ॥३॥ जहा णं गणहरा वासाणं सवीसइराए जाव पजोसविंति, तहा णं गणहरसीसाचि वासाणं जाव पजोसविंति॥४॥ जहा णं गणहरसीसा वासाणं जाव पञ्जोसविंसि, तहा णं थेरावि वासावासं पजोसविंति ॥५॥ जहा णं थेरा वासाणं जाव पजो
दीप अनुक्रम [२६४]
॥५८॥
सामाचारी- वर्षावास (चातुर्मास)-दिवसानाम् मर्यादा-कथनं
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