SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४५) अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:) ....... मूलं [१५४] / गाथा ||१२५-१३२|| +OC प्रत सूत्रांक वृत्तिः उपक्रमे [१५४] नामनि० ॥२५५॥ गाथा: ||-|| अनुयोग क्षपणा अपचयो निर्जरा इति पर्यायाः, शेष सूत्रसिद्धमेव, यावदोघनिष्पन्नो निक्षेपः समाप्तः । सर्वत्र चेह दिभावे विचार्येऽध्ययनमेवायोजनीयम् ॥ अथ नामनिष्पन्ननिक्षेपमाहरीया से किं तं नामनिप्फण्णे?, २ सामाइए, से समासओ चउविहे पं०, तं०–णामसामाइए ठवणासामाइए दव्वसामाइए भावसामाइए । णामठवणाओ पुव्वं भणिआओ । दव्वसामाइएवि तहेव, जाव से तं भविअसरीरदव्वसामाइए । से किं तं जाणयसरीरभविअसरीरवइरित्ते दव्वसामाइए ?, २ पत्तयपोत्थयलिहियं, से तं जाणयसरीरभविअसरीरवइरित्ते दव्वसामाइए, से तं णोआगमओ दव्वसामाइए, से तं दव्वसामाइए । से किं तं भावसामाइए?, २ दुविहे पं०, तं०-आगमओ अ नोआगमओ अ । से किं तं आगमओ भावसामाइए?, २ जाणए उवउत्ते, से तं आगमओ भावसामाइए । से किं तं नोआगमओ भावसामाइए?,२-जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे णिअमे तवे । तस्स सामाइअं होइ, इइ केवलिभासि ॥१॥ जो समो स दीप अनुक्रम [३२५-३३६] ॥२५५॥ JamEducation मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति: ~513~
SR No.004147
Book TitleAagam 45 ANUYOGDWAR Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages547
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size124 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy